क़ुरआन में दीन ही नुज़ूल हो रहा था, और ज़ाहिर सी बात है कि जब अल्लाह दीन की तकमील का ऐलान करेगा तो यक़ीनन वोही ऐलान क़ुरआन के मुकम्मल होने का भी होगा
सो दीन के मुकम्मल कर देने के बाद क़ुरआन में आयतों के नुज़ूल की बात कुछ तार्किक नही लगती.
क़ुरआन की आखरी आयत कौन सी नाज़िल हुई थी इस पर उलमा की अलग अलग राय हैं, जिनमें सबसे मशहूर, और सबसे आम राय ये है कि सूरह मायदा की तीसरी आयत जो हज्जे अलविदा में अरफा के रोज़ नाज़िल हुई थी कि "आज हमने तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया और तुम्हारे लिये इस्लाम ही को पसंद कर लिया" ही क़ुरआन की आख़री वह्य थी
क़ुरआन की आखरी वह्य होने के बारे में अलग अलग राय होने की वजह मुख़्तलिफ़ अहादीस में अलग अलग आयतों के बारे में उनके आख़री वह्य होने के अलग अलग सहाबा के बयान हैं,
जैसे-
Narrated Al-Bara: The last Sura that was revealed was Bara'a, and the last Verse that was revealed was: They ask you for a legal verdict, Say: Allah's directs (thus) about those who leave no descendants or ascendants as heirs. (4.176)
Bukhari 4606
Narrated Sa`id bin Jubair: The people of Kufa differed as regards the killing of a believer so I entered upon Ibn `Abbas (and asked him) about that. Ibn `Abbas said, The Verse (in Surat-An-Nisa', 4:93) was the last thing revealed in this respect and nothing cancelled its validity.
Bukhari 4763
पर ऐसी कोई भी हदीस नही है जिसमें खुद नबी ﷺ ने कुरआन की किसी आयत को आख़री वह्य के तौर पर पेश किया होता,
अगर हदीस में नबी ﷺ का ऐसा कोई बयान होता तो वो सबसे ज्यादा काबिल ए यक़ीन होता क्योंकि खुद नबी ﷺ पर क़ुरआन की आयतों का नुज़ूल हुआ करता था, इसलिये बजाय किसी और शख़्स के इस बात की सबसे सटीक जानकारी आप ﷺ के पास ही होती कि कौन सी वह्य सबसे आख़री थी, लेकिन ऐसी कोई हदीस नही मौजूद है
सूरह माएदा की तीसरी आयत के आख़री वह्य होने की राय भी एक अंदाज़ा ही है
लेकिन ये राय हमें इसलिये ज़्यादा मज़बूत मालूम होती है क्योंकि ये राय किसी भी हदीस से ज़्यादा मज़बूत दलील यानी क़ुरआन की बुनियाद पर बनाई गई है,
कुरआन इस बात को फ़रमा रहा है कि "आज के दिन तुम्हारे दीन को क़ामिल कर दिया गया, और अल्लाह ने तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी"
ये अल्फ़ाज़ यही इशारा देते हैं कि ये क़ुरआन की आख़री वह्य के मौके के अल्फ़ाज़ हैं
तमाम इस्लामी दुनिया के आलिमों का इज्मा है कि कोई भी हदीस
जो क़ुरआन की बात को काटती हुई या ख़िलाफ़ जाती हुई लगे तो उस हदीस की बात कुबूलने की बजाय क़ुरआन की बात को ही कुबूला जाएगा !!
इस राय को मानते हुए पूछा गया है कि सूरह माएदा की तीसरी आयत कुरआन का आख़री नुज़ूल नही थी, ये राय भी कुछ अहादीस पर मबनी है जिनके मुताबिक़ हज्जतुल विदा के बाद भी नबी ﷺ पर आयतों का नुज़ूल होता रहा था
लेकिन देखने में आता है कि अहादीस का मामला एक ही मामले में काफ़ी विरोधाभासी होता है, इसी मामलेमें देख लीजिए कितनी अलग अलग बातें अलग अलग अहादीस कह रही हैं
ऐसे मामलात में जहां हदीस कोई एक पक्की राय न पेश कर पा रही हों, और इख़्तिलाफ़ पैदा हो रहे हों,
बेहतर है कि क़ुरआन की रौशनी में फैसला किया जाए, ऐसा खुद कुरआन मजीद में अल्लाह का हुक्म भी है,
इसलिये हम क़ुरआन के सूरह माएदा की तीसरी आयत के अल्फ़ाज़ की बुनियाद पर उस आयत को ही क़ुरआन का आख़री नुजूल मानकर उन अहादीस जिनमें इसके बाद भी आयतों के नुज़ूल की बात कही गई है को नजरअंदाज करते हैं
जो अल्फ़ाज़ सूरह माएदा की तीसरी आयत के हैं, वो यही ज़ाहिर करते हैं कि ये आख़री वह्य के मौके पर नुज़ूल हुए हैं और इसके बाद क़ुरआन में और कुछ घटत बढ़त नही हुई है
हमने इस राय को मान लिया है इसलिए हम ये समझते हैं कि इस राय के खिलाफ जाने वाली अहादीस को या तो हम सही से समझ नहीं पा रहे या उन अहादीस में बाद के ज़मानों में कोई रद्दोबदल हो गई है
अल्लाह ही बेहतर जानने वाला है