गुस्ताख ए रसूल की सजा क्या है

ये लेख फ्रांस की एक धर्म विरोधी पत्रिका शार्ली हेब्दो, जो हर धर्म पर बेहद अश्लील टिप्पणियां करने के लिए कुख्यात है, इस पत्रिका के कार्यालय पर जनवरी 2015 मे आईसिस द्वारा किए गए आतंकवादी हमले को इस्लाम से जोड़े जाने के विरोध मे लिखा गया है

बेशक मुझे भी पेरिस मे मारे जाने वाले चार्ली हेब्दो के कर्मचारियों से उनकी गलीज़ हरकतों के कारण, कोई हमदर्दी नहीं है, मगर उनका मार डाला जाना, ये इस्लामी तरीका नहीं हो सकता 

वो सिर्फ कुछ महीनों की जेल, या कुछ जुर्माने, या कुछ कोड़ो की मार भर की सज़ा के मुस्तहिक थे, जान से मार दिए जाने के नहीं.  ताअफ के मैदान मे जहाँ ज़ालिमो ने मेरे प्यारे नबी ﷺ को पत्थरों से मारकर लहूलुहान कर दिया था उस वक्त अल्लाह ने जब नबी ﷺ की आजिज़ी से मांगी गई दुआ कुबूल कर के, उस नामुराद शहर पर अज़ाब डालने के लिए पहाड़ों का सरदार फरिश्ता भेजा था, तो नबी ﷺ ने ये जवाब दिया था उस फरिश्ते को कि मै इन लोगों को कत्ल नहीं करवाना चाहता बल्कि अगर ये लोग हक की दावत कुबूल नहीं करते, कोई बात नहीं , मै अल्लाह से उम्मीद रखता हूँ कि इनकी आगे आने वाली नस्ल ज़रूर सच को कुबूल करेगी,  मेरा ख्याल है कि वो ही इस्लामी तरीका है
सही मुस्लिम, किताब-19, हदीस-4425

ये तो रहा अपने बारे मे खुद नबी ﷺ का फैसला,  ऐसे ही किसी मौके पर जब कोई गुस्ताख शख्स हमारे नबी ﷺ की शान मे गुस्ताखी करे तो हम मुसलमानो को नबी ﷺ ने क्या हुक्म दिया है?  नबी ﷺ ने कभी अपनी शान मे गुस्ताखी करने वाले के लिए किसी सज़ा का हुक्म नही दिया, बल्कि जब सहाबा ए किराम ने आप ﷺ से गुस्ताख ए रसूल को सजा देने की इजाज़त मांगीतो आप ﷺ ने सहाबा को वो इजाज़त भी न दी,  देखिए बुखारी शरीफ़ मे हजरत अबू हुरैरा,रज़ि. से रिवायत एक हदीस है, कि एक शख्स ने नबी ﷺ से अपने कर्ज का मुतालबा किया उसकी जुबान कडवी थी तो आप ﷺ के सहाबा ने उस बदतमीज़ शख्स की गर्दन मारने के लिए झपटे, इस पर आप ﷺ ने सहाबा को मना किया, और न सिर्फ उस बदतमीज़ शख्स को मारने से नबी ﷺ ने सहाबा को रोका बल्कि उस शख्स को उसके कर्ज़ से बेहतर चीज भी लौटाई 
बुखारी शरीफ़, किताब 41, हदीस 575

इसी तरह सहीहैन मे एक हदीस हज़रत अबू सईद ख़दरी रज़ि. से रिवायत है कि आप ﷺ सहाबा के बीच माले गनीमत तकसीम कर रहे थे, तो एक शख्स ने नबी ﷺ से बदतमीज़ी की हज़रत उमर रज़ि. ने तलवार लेकर उस बदतमीज़ शख्स का सर काट लेने की इजाज़त नबी ﷺ से मांगी, तो आप ﷺ ने हजरत उमर रज़ि. को ऐसा करने से मना किया और भविष्यवाणी की कि ऐसे ही गुस्ताख लोग आगे भी होंगे जो बहुत इबादत करेंगे मगर दीन से ऐसे बेअसर निकल जाएंगे जैसे तीर शिकार के जिस्म से ऐसे पार हो जाता है कि उसपर शिकार के खून का एक भी कतरा नहीं होता 
सही मुस्लिम शरीफ़, किताब 5, हदीस 2323
आप ﷺ सहाबा के बीच माले गनीमत तकसीम कर रहे थे, तो एक शख्स ने नबी ﷺ से बदतमीज़ी की हज़रत उमर रज़ि. ने तलवार लेकर उस बदतमीज़ शख्स का सर काट लेने की इजाज़त नबी ﷺ से मांगी, तो आप ﷺ ने हजरत उमर रज़ि. को ऐसा करने से मना किया और भविष्यवाणी की कि ऐसे ही गुस्ताख लोग आगे भी होंगे जो बहुत इबादत करेंगे मगर दीन से ऐसे बेअसर निकल जाएंगे जैसे तीर शिकार के जिस्म से ऐसे पार हो जाता है कि उसपर शिकार के खून का एक भी कतरा नहीं होता


तो इन दोनों अहादीस मे नबी ﷺ की शान मे गुस्ताखी किए जाने पर मुसलमान को नबी ﷺ की तरफ से क्या हुक्म है वो साफ पता चल रहा है. और वो हुक्म ये है कि उस गुस्ताख को छोड़ दिया जाए, या उसके साथ बेहतर सुलूक कर के उसको उसकी गलती पर शर्मिन्दा किया जाए .

बेशक सहाबा ए किराम की मोहब्बत नबी ﷺ के लिए किसी भी पॉलिटिक्स, किसी भी हिकमत के बगैर और इन चीज़ों से ऊपर थी, इस बात मे कोई शक नहीं लेकिन इस बात मे भी कोई शक नहीं कि इन मौकों पर दीन का सही इल्म नबी ﷺ सहाबा को बताया करते थे, न कि सहाबा को जैसा वो कर रहे हों वैसा ही करने देते थे, और फिर सहाबा ए किराम आप ﷺ के हुक्म की तामील करते थे,  ज़ाहिर है सहाबा पहले से दीन को नहीं जानते थे, नबी ﷺ मौके मौके पर यूं ही उन्हें दीन का इल्म देते, भले काम की ताकीद करते और गलत कामों को करने से रोका करते, और आज के ज़माने मे अगर हम भावनाओं मे बहकर कुछ गलत करने चलें तो यही अहादीस हमें नबी ﷺ का हुक्म बताती हैं, क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?

हदीस की पुस्तकों से बनाई गई इस्लामी मान्यताओं मे कभी कभी एक विरोधाभास दिखाई पड़ता है, 


जैसे कि कई अहादीस मे नबी ﷺ धर्म मे नए रिवाज़ो को बनाने की मनाही करते हैं, पर कुछ मुस्लिम भाई इस्लाम मे नए रिवाज़ो का प्रचलन करना गलत नहीं मानते और इसके लिए कारण देते हैं वो सहाबा द्वारा इस्लाम मे शुरू की गई कुछ रीतियों को, इसी तरह नबी ﷺ ने अनेकों हदीसों मे कब्रो से अकीदत और लगाव रखने को मना फरमाया है, लेकिन कुछ मुस्लिम भाई कब्रो से लगाव रखने को गलत नहीं मानते और इसके लिए कारण देते हैं कि कुछ सहाबा ने नबी ﷺ के रौज़ा ए मुबारक के हुजरे की दीवारों से अपना चेहरा मला या कोई सहाबा रौज़ा ए मुबारक से लिपटे थे. और नबी ﷺ ने कभी खुद को बुरा भला कहने वालों का अहित नहीं किया ऐसा अनेक विवरणों मे दर्ज है लेकिन कुछ सहाबा ने नबी ﷺ का अपमान करने वालों को कत्ल कर डाला, ऐसे कुछ विवरण सुनकर लोग असमंजस मे पड़ जाते हैं कि किस बात को मानें और किस बात को रद्द कर दें 

जहाँ अक्सर सहाबा से ये विरोधाभासी बातें जुड़ी हुई हैं, वहाँ ये बात ध्यान मे रखी जानी आवश्यक है कि नबी ﷺ का उम्मती होने के नाते हमारे लिए तो सबसे बेहतरीन नमूना जिन्दगी जीने का प्यारे नबी ﷺ हैं, सहाबा के कौल (कथनी) और फेल (करनी) को हम नबी ﷺ के कौल और फेल पर हरगिज़ तरजीह नही दे सकते जबकि सहाबा और नबी ﷺ के कौल और फेल मे प्रत्यक्ष विरोधाभास भी नजर आए.  हां क्योंकि ये सहाबा की आदत बिल्कुल नहीं थी कि वो नबी ﷺ की आज्ञा का उल्लंघन करें , इसलिए इस विरोधाभास के नजर आने के पीछे अपनी कोई मसलेहत (अप्रत्यक्ष योजना) हो सकती है,  जैसे कि यहूदी कवि काब बिन अल अशरफ की सहाबा द्वारा हत्या को काब द्वारा अपनी शायरी मे नबी ﷺ का मज़ाक उड़ाने का दण्ड मान लिया जाता है.  जबकि नबी ﷺ का मज़ाक उड़ाने का दण्ड किसी को देना पवित्र कुरान की शिक्षा के विरुद्ध है, अल्लाह कुरान पाक मे नबी ﷺ से फरमाता है कि नबी ﷺ का मजाक उड़ाने वालों को दण्ड देने का अधिकार अल्लाह ने अपने हाथ मे ले रखा है, अल्लाह का फरमान है : “जो लोग तुम्हारी हँसी उड़ाते हैं, बेशक हम तुम्हारी तरफ से उनके लिए काफी हैं ” 
अल-कुरआन, 15:95

दरअसल काब बिन अल अशरफ की हत्या के पीछे मसलेहत ये थी कि वो काफिरों को मुस्लिमों पर आक्रमण करने को भड़काया करता था और उसके कारण सैकड़ों मुस्लिमों की जान को खतरा बना रहता था, इसलिए काब की हत्या, आत्मरक्षा के तहत की गई हत्या थी, न कि नबी ﷺ के अपमान का दण्ड,   तो ऊपरी तौर पर पवित्र कुरान की शिक्षा के विरुद्ध जाने वाली किसी हदीस या सहाबा से जुड़े किसी विवरण के पीछे क्या मसलेहत है, वो मसलेहत बिना पर्याप्त अध्ययन के समझी नहीं जा सकती, और बिना मसलेहत को समझे उस हदीस का अनुकरण कुरान की शिक्षा के विरुद्ध करने लगा जाए तो अर्थ का अनर्थ ही होगा.

अत: यही बेहतर है कि विशेषकर जिन मामलों मे नबी ﷺ ने स्पष्ट मनाही की हुई है, या जिन मामलों के बार बार नबी ﷺ के साथ घटित होने पर भी नबी ﷺ ने एक सा ही व्यवहार रखा और उन मामलों मे सहाबा के विरोधाभासी व्यवहार के पीछे की मसलेहत का ज्ञान न हो तो उन मामलों मे नबी ﷺ के आदेश का अनुसरण और आप ﷺ के व्यवहार का अनुकरण ही करना चाहिए, यही श्रेयस्कर है, और यही धर्म परायणता है ॥

शेष धार्मिक मामलों मे जो नबी ﷺ के ज़माने मे पेश नहीं आए थे, या जिन मामलों मे नबी ﷺ ने मनाही नहीं की थी, वहाँ सहाबा के निर्देशों का पालन करना ज़रूर बेहतरीन अमल है.