सूर्य ( सूरज ) के विषय मे कुरान

कुरान के अनुसार सूरज काले मटमैले पानी मे जा के डूबता है, अपनी बात को सही सिद्ध करने के लिए कई लोग कुरान पाक की ये आयत भी दिखाते हैं

यहाँ तक कि वह ( ज़ुलकारनैन ) उस जगह पहुंच गया ,और उसने सूरज को काले मटमैले पानी के स्रोत मे डूबते हुआ पाया"
क़ुरआन 18:86

लेकिन ये कोई वीर बताने की ज़हमत नहीं करता कि इस आयत के आगे और पीछे क्या लिखा है अगर बता दें तो उनकी पोल न खुल जाएगी

दरअसल इन आयतों मे महान चक्रवर्ती सम्राट "ज़ुल्कारनैन" जो कि एक इन्सान ही थे, कोई देवता या नबी नही जिनके पास चमत्कारी शक्तियां हों, उनका किस्सा है और उनके विजय अभियानों का जिक्र है

ये राजा ही कई देशों को जीतते हुए जब अति पश्चिम मे गए और समुद्र के किनारे पहुंचे तो शाम का समय था, सूरज डूब रहा था, ज़ुल्कारनैन ने जैसा मंज़र उस वक्त देखा, उसी का वर्णन कुरान मे है

सूरज पानी मे डूबा, ये एक इन्सान का व्यू है जो आसमान मे उड़ कर धरती से दूर जाकर ये नहीं देख सकते थे कि सूरज कहाँ गया,

न कि यहाँ ये ज़िक्र है कि अल्लाह ने सूरज के साथ क्या किया
जिसको ये देखना है कि कुरान के अनुसार रात मे सूरज कहाँ जाता है, 

उसने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को सत्य के आधार पर। वह लपेट देता है रात्रि को दिन पर तथा दिन को रात्रि पर तथा वशवर्ती किया सूर्य और चन्द्रमा को। प्रत्येक चल रहा है, अपनी निर्धारित अवधि के लिए। सावधान! वही अत्यंत प्रभावशाली, क्षमी है।
क़ुरआन 39:5

वो सूरह ज़ुमर की 5वीं आयत देखे जिसमे स्पष्ट तौर पर लिखा है 

कि अल्लाह रात को दिन पर और दिन को रात पर "लपेटता" है लपेटने का अर्थ है किसी चीज को ऊपर नीचे हर ओर से गोलाई मे कवर करना, यानि कुरान के अनुसार अल्लाह दुनिया पर हर ओर से सूर्य का प्रकाश डालता है,

इसका अर्थ है कि जब रात मे सूरज छिप जाता है तो वो दुनिया के उल्टी तरफ के गोलार्ध पर उजाला फैला रहा होता है,  न कि समुद्र मे डूब कर उजाला फैलाना बंद कर देता है !!

और रही बात पानी के काला मटमैला होने की तो फैक्ट ये है कि समुद्र तट पर सूरज डूबते समय पानी का रंग काला और मटमैला ही दिखता है, 

ये आप समुद्र के किनारे जाकर देख सकते हैं, या समुद्र के छोर पर अस्त होते हुए सूरज के फोटो देख कर भी चेक कर सकते हैं.

अक्सर मैंने कुछ गैरमुस्लिम दोस्तों को ये कहकर पवित्र कुरआन का मजाक उड़ाते देखा है कि 

वह दोनों सूर्योदय[1] के स्थानों तथा दोनों सूर्यास्त के स्थानों का स्वामी है। 
1. गर्मी तथा जाड़े में सूर्योदय तथा सूर्यास्त के स्थानों का। इस से अभिप्राय पूर्व तथा पश्चिम की दिशा नहीं है।
क़ुरआन 55:17 

मे अल्लाह को दो मगरिबो और दो मशरिको का स्वामी बताया गया है, यानि कुरान मे धरती पर दो पूर्व और दो पश्चिम बताए गए हैं जबकि विज्ञान के अनुसार ऐसा होना सम्भव ही नहीं है ॥

दरअसल मजाक उड़ाने वालों से ये गलती होती है कि वो मशरिक व मगरिब का अर्थ धरती पर स्थित किसी एक बिन्दु को समझ लेते हैं, 

जबकि हम दिशा ज्ञान कराने वाले इन अरबी शब्दों का शाब्दिक अर्थ देखें तो बात स्पष्ट हो जाती है कि मशरिक (पूर्व) व मगरिब (पश्चिम) धरती के एक बिन्दु का नाम नहीं हैं 

मशरिक शब्द का मूल श-र-क है जिसका अर्थ "उदय होना" है , 

इसी तरह मगरिब शब्द का मूल ग-र-ब है, जिसका अर्थ अस्त होना है , 

यानि ये दोनों शब्द मशरिक व मगरिब सूर्य की स्थितियों सूर्योदय और सूर्यास्त से सम्बन्धित हैं 

और जब इन शब्दों का प्रयोग दिशा ज्ञान के लिए किया जाता है तो मशरिक का अर्थ होता है वो स्थान जहाँ से सूर्य निकलता है, और मगरिब का अर्थ होता है वो स्थान जहाँ पर सूर्य डूबता है, 

यानि जिस भी स्थान पर सूरज निकले, डूबे हर वो स्थान मशरिक मगरिब होगा ! 

अब जिन्हें विज्ञान का कुछ ज्ञान है वो लोग जानते हैं कि सूरज वर्ष मे कभी एक ही स्थान से नहीं निकलता, बल्कि हर रोज़ एक नए स्थान से निकलता है, सूरज का ये स्थान परिवर्तन दरअसल धरती के सूर्य की परिक्रमा करने के विशेष आकार के परिपथ के कारण होता है , 

और इसी स्थान परिवर्तन के कारण हमारी धरती पर मौसम बदलते हैं और दिन छोटे बड़े होते हैं, विश्व के मानचित्र मे आपको तीन मानक रेखाओं का अंकन दिखाई देगा (कर्क रेखा, भूमध्य रेखा और मकर रेखा )

22 जून को सूर्य अपने आरम्भिक बिन्दु , कर्क रेखा पर निकलता है, हमारे देश मे वो दिन वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है 

और रात सबसे छोटी, इसके अगले दिन ही सूर्य इस बिन्दु पर न निकलकर इससे थोड़ा दक्षिण की ओर होकर निकलता है 

इसी कारण दिन और रात के समय मे पिछले दिन से थोड़ा परिवर्तन भी आ जाता है, 

फिर सूरज हर अगले दिन एक एक बिन्दु दक्षिण की ओर होकर निकला करता है, 

इस से दिन और रात के समयों मे भी रोज परिवर्तन आया करता है, इस तरह चलते हुए 23 सितंबर को सूर्य भूमध्य रेखा पर पहुंचता है, उस दिन रात और दिन बराबर होते हैं, अगले दिन फिर सूर्य भूमध्य रेखा से भी थोडा दक्षिण हो कर निकलता है , इसी तरह चलते हुए सूर्य अपने अंतिम बिन्दु मकर रेखा पर 22 दिसम्बर को पहुंचता है, और उस दिन वर्ष का सबसे छोटा दिन होता है और सबसे लम्बी रात ॥ इस बिन्दु के बाद सूर्य उत्तर दिशा की ओर लौटने लगता है, 

और 22 जून तक उत्तर की ओर चलता है ॥ 

सूरज हमेशा निकलने डूबने के इन्हीं दो आदि और अंत के बिन्दुओं (कर्क और मकर रेखा) के बीच चलता रहता है , कुरान 55:17 मे सूर्य की चाल के आदि और अंत के इन्हीं दो मुख्य बिन्दुओं की ओर इशारा किया गया है ॥

लोगों के मन मे प्रश्न उठेगा कि जब सूर्य रोज नए स्थान पर निकलता डूबता है, तो मशरिक व मगरिब दो कहाँ रहे, वो तो बहुत सारे हो गए

तो भाईयों, कुरान भी ये दावा नहीं करता कि मशरिक और मगरिब केवल दो ही हैं, कुरान 55:17 मे मशरिक व मगरिब मे से प्रत्येक के लिए द्विवचन का प्रयोग किया गया है 

यानी दो मशरिको व दो मगरिबों का विशेष कर के जिक्र किया गया है, 

न कि ये दावा किया गया है कि मशरिक मगरिब दो ही हैं बल्कि वहाँ कहने का अर्थ ये है कि अल्लाह सूर्य की चाल के आरम्भिक बिन्दु का भी स्वामी है और अंतिम बिन्दु का भी ! 

व्याकरण मे किसी जीव या वस्तु के "आदि से अंत तक" की बात एक व्यंजना के रूप मे प्रयुक्त होती है, 

जिसका अर्थ उस जीव/वस्तु के पूरे अस्तित्व से होता है, 

जैसे कोई व्यक्ति अपने प्रिय से कहे कि "मैं सर से पांव तक तुम्हारा हूँ", तो इसका अर्थ उस व्यक्ति के केवल दो अंग, सिर और पैर ही नहीं बल्कि उस व्यक्ति का पूरा अस्तित्व होता है, 

उसी तरह यदि कुरान मे ये कहा गया है कि अल्लाह आदि और अंत वाले मगरिबों और मशरिकों का स्वामी है तो इसका अर्थ केवल दो स्थानों से नहीं बल्कि इन दो बिन्दुओं के बीच के सारे स्थानों से भी है, कि अल्लाह इन सारे स्थानों का भी स्वामी है 

तो मैं शपथ लेता हूँ पूर्वों (सूर्योदय के स्थानों) तथा पश्चिमों (सूर्यास्त के स्थानों) की, वास्तव में हम अवश्य सामर्थ्यवान हैं।
क़ुरआन 70:40 

मे मशरिकों व मगरिबों के लिए द्विवचन की बजाय बहुवचन का प्रयोग कर के ये स्पष्ट कर देता है कि मशरिक व मगरिब दो से बहुत अधिक हैं ॥

सूरज के गरम पानी में डूब जाने वाली हदीस की सत्यता

अबू दाऊद शरीफ़ में हज़रत अबू ज़र रज़ि० द्वारा बयान की गई एक हदीस है जिसमे हज़रत अबू ज़र रज़ि० बयान करते हैं कि 

नबी ﷺ ने अस्त होते सूरज को देखकर मुझसे पूछा कि क्या तुम जानते हो कि ये सूरज कहाँ जाता है, मैंने कहा कि अल्लाह और उसके नबी ही इस विषय में सही बात जानते हैं, इस पर नबी ﷺ ने फ़रमाया कि सूरज जब अस्त होता है तो वो गर्म पानी के स्रोत में डूब जाता है
Narrated Abu Dharr: I was sitting behind the Messenger of Allah صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وسلم who was riding a donkey while the sun was setting. He asked: Do you know where this sets ? I replied: Allah and his Messenger know best. He said: It sets in a spring of warm water (Hamiyah).
Abu Dawood 4002

इस हदीस का अक्सर विरोधीजन मज़ाक उड़ाया करते हैं कि ये मुस्लिमों के रसूल का विज्ञान का ज्ञान है

उत्तर: हदीस के विशेषज्ञों ने उपरोक्त हदीस के रावियों की चेन सही होने के बावजूद, इस हदीस को अप्रमाणिक माना है 

क्योंकि एक तो इस हदीस के एक रावी सुफ़ियान बिन हुसैन के विषय में ये सूचना मिलती है कि वे सच्चे तो थे परंतु हदीस के शब्द सही प्रकार से याद न रख पाते थे,

दूसरे, उपरोक्त हदीस, हदीस की सर्वाधिक मान्यताप्राप्त दोनों ही किताबों, बुख़ारी एवं मुस्लिम में नही है, बल्कि हज़रत अबू ज़र रज़ि० की ही इसी विषय में बयान की हुई सही सनद की एक दूसरी हदीस बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ़ में दर्ज की हुई है, जिस हदीस के शुरुवात के शब्द तो उपरोक्त हदीस के ही समान हैं, पर आगे जाकर बात कुछ और हो जाती है

हदीस के विद्वानों की राय है कि ऐसा होना मुमकिन नहीं है कि एक ही व्यक्ति एक ही विषय पर दो बिलकुल अलग अलग बातें रिवायत करता हो, इसलिये इन दोनों हदीसों में जिस हदीस के रावियों की याददाश्त के विषय में भी कोई संशय नहीं है उसे स्वीकार किया जाता है, और उस हदीस में सूर्य के गर्म पानी के स्रोत में डूबने की बात नही है.

बुख़ारी, मुस्लिम में अबू ज़र रज़ि० से रिवायत है कि "नबी ﷺ ने अस्त होते सूरज को देखकर मुझसे पूछा कि क्या तुम जानते हो कि ये सूरज कहाँ जाता है, मैंने कहा कि अल्लाह और उसके नबी ही इस विषय में सही बात जानते हैं, इस पर नबी ﷺ ने फ़रमाया "ये जाता है और "अर्श" के नीचे पहुँच जाता है और सजदा करता है, फिर ये इजाज़त मांगता है (पूरब से निकलने की) और इसे इजाज़त दी जाती है, और वो दिन भी करीब है (प्रलय का दिन) जब ये सजदा करेगा तो न क़ुबूला जाएगा और जब इजाज़त मांगेगा तो न दी जाएगी और कहा जाएगा कि जहाँ से आया था वहीँ वापस चला जा, फिर उस दिन सूरज पश्चिम ही से निकलेगा

Narrated Abu Dhar: The Prophet asked me at sunset, Do you know where the sun goes (at the time of sunset)? I replied, Allah and His Apostle know better. He said, It goes (i.e. travels) till it prostrates Itself underneath the Throne and takes the permission to rise again, and it is permitted and then (a time will come when) it will be about to prostrate itself but its prostration will not be accepted, and it will ask permission to go on its course but it will not be permitted, but it will be ordered to return whence it has come and so it will rise in the west. And that is the interpretation of the Statement of Allah: And the sun Runs its fixed course For a term (decreed). that is The Decree of (Allah) The Exalted in Might, The All- Knowing. (36.38)
सही बुख़ारी 3199

मैंने विरोधियों को इस हदीस का मज़ाक उड़ाते भी देखा है कि सूरज का रात में अल्लाह के सिंहासन के नीचे जाना और सुबह निकलने के लिए इजाज़त माँगना कोई विज्ञानसम्मत बातें नही हैं

पर मैं यदि कहूँ कि इस हदीस में वाकई विज्ञानसम्मत बातें ही कही गई हैं, तो 

दरअसल इस हदीस, जिसे विद्वानों ने सही के रूप में स्वीकारा है, 

इस में शब्द "अर्श" का अर्थ कई अनुवादकों ने "सिंहासन" किया है, जो अनुवाद ये समझते हुए किया जाता है कि हदीस में अल्लाह के सिंहासन की बात की गई होगी

परन्तु ये समझना चाहिए कि "अर्श" का केवल एक ही अर्थ नहीं होता

बल्कि इस अरबी शब्द का मूल "ऊँचाई" से है, जब अल्लाह के साथ इस शब्द अर्श का प्रयोग किया जाता है तो ये किसी भौतिक दिशा की बजाय उपमा के रूप में प्रयुक्त होता है, और ब्रह्माण्ड में अल्लाह के "सबसे ऊंचे" पद की ओर इंगित किया जाता है,

क़ुरआन में शब्द अर्श का प्रयोग छत के लिये भी किया गया है, जैसा कि आप जानते हैं कि छत हमेशा ऊंचाई पर होती है

 ( देखिये

तो कितनी ही बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने ध्वस्त कर दिया, जो अत्याचारी थीं, वे अपनी छतों के समेत गिरी हुई हैं और बेकार कुएं तथा पक्के ऊँचे भवन।
क़ुरआन 22:45 

अथवा उस व्यक्ति के प्रकार, जो एक ऐसी नगरी से गुज़रा, जो अपनी छतों सहित ध्वस्त पड़ी थी? उसने कहाः अल्लाह इसके ध्वस्त हो जाने के पश्चात् इसे कैसे जीवित (आबाद) करेगा? फिर अल्लाह ने उसे सौ वर्ष तक मौत दे दी। फिर उसे जीवित किया और कहाः तुम कितनी अवधि तक मुर्दा पड़े रहे? उसने कहाः एक दिन अथवा दिन के कुछ क्षण। (अल्लाह ने) कहाः बल्कि तुम सौ वर्ष तक पड़े रहे। अपने खाने पीने को देखो कि तनिक परिवर्तन नहीं हुआ है तथा अपने गधे की ओर देखो, ताकी हम तुम्हें लोगों के लिए एक निशानी (चिन्ह) बना दें तथा (गधे की) अस्थियों को देखो कि हम उन्हें कैसे खड़ा करते हैं और उनपर कैसे माँस चढ़ाते हैं? इस प्रकार जब उसके समक्ष बातें उजागर हो गयीं, तो वह  पुकार उठा कि मझेl (प्रत्यक्ष) ज्ञान हो गया कि अल्लाह जो चाहे, कर सकता है। 
क़ुरआन 2:259
 पर), 

ऊँचा उठाने के लिए भी
(और हमने उस जाति (बनी इस्राईल) को, जो निर्बल समझे जा रहे थे, धरती (शाम देश) के पश्चिमों तथा पूर्वों का, जिसमें हमने बरकत दी थी, अधिकारी बना दिया और (इस प्रकार हे नबी!) आपके पालनहार का शुभ वचन बनी इस्राईल के लिए पूरा हो गया, उनके धैर्य रखने के कारण तथा हमने उसे धवस्त कर दिया, जो फ़िरऔन और उसकी जाति कलाकारी कर रही थी और जो बेलें छप्परों पर चढ़ा रहे थे
क़ुरआन 7:137

और ऊंचाई पर उठाने के लिए प्रयुक्त होने वाली वस्तु के लिए भी 
(अल्लाह वही है, जिसने बेलों वाले तथा बिना बेलों वाले बाग़ पैदा किये तथा खजूर और खेत, जिनसे विभिन्न प्रकार की पैदावार होती है और ज़ैतुन तथा अनार समरूप तथा स्वाद में विभिन्न, इसका फल खाओ, जब फले और फल तोड़ने के समय कुछ दान करो तथा अपव्यय (बेजा खर्च)  न करो। निःसंदेह, अल्लाह बेजा ख़र्च करने वालों से प्रेम नहीं करता।
कुरआन 6:141

(अन्ततः) उसके फलों को घेर लिया गया, फिर वह अपने दोनों हाथ मलता रह गया उसपर, जो उसमें खर्च किया था और वह अपने छप्परों सहित गिरा हुआ था और कहने लगाः क्या ही अच्छा होता कि मैं किसी को अपने पालनहार का साझी न बनाता।
क़ुरआन 18:42

प्राचीन काल में शासकों के सिंहासन भी दरबार में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित होते थे, अतः सिंहासन को भी उसकी ऊंचाई के कारण ही अर्श कहा जाता है

और धरती से ऊंचाई पर होने के कारण ही सामान्य तौर पर आकाश को भी अर्श कहा जाता है
.
अब उपरोक्त हदीस में शब्द "अल्लाह का अर्श" नही है, तो समझा जा सकता है कि यहाँ अल्लाह के स्थान की बात नही, बल्कि सूरज की भौतिक दिशा के बारे में बात की जा रही है,  

यानि यहाँ "अर्श" का अर्थ आकाश से है

हदीस में ये बताया गया है कि जब सूरज अस्त हो कर हमारी आँखों से ओझल हो जाता है तो वो आकाश से कहीं और नही जाता, बल्कि अर्श यानि आकाश में ही नीचे की ओर चला जाता है, यानि धरती पर हमारे गोलार्ध के नीचे की ओर....
हदीस की इस बात से ये पता चलता है कि नबी सल्ल० जानते थे कि ज़मीन के नीचे की ओर भी आकाश है,

सूरज द्वारा सजदा करना और पूरब से उदय होने की इजाज़त माँगना, स्पष्ट रूप से सूरज की भौतिक स्थितियों के बारे में कोई ज्ञान देने वाली बातें नही हैं

यदि इस हदीस से कोई ऐसा अनुमान लगाता हो कि सजदा करने, या पूरब से उदित होने की इजाज़त मांगने के लिए सूरज अपनी कक्षा छोड़ कर कहीं चला जाता हो, या दिन और रात की परिक्रमाएं रुक जाती हों, 

तो ये उस इंसान की अपनी सोच है, क्योंकि हदीस में सूरज के अपनी कक्षा छोड़ देने या रुक जाने का पता देने वाला कोई शब्द नही आया है

बल्कि अपने स्थान पर रहते हुए और दिन रात की परिक्रमा चलते रहते हुए, सूरज आध्यात्मिक तौर पर सजदा और उदित होने की आज्ञा मांगने के काम करता है

दरअसल इन दोनों बातों का अर्थ ये है कि ब्रह्माण्ड को गतिमान रखने का सामर्थ्य केवल अल्लाह ही के पास है

और क़ुरआन विभिन्न आयतों में बताता है कि अल्लाह ब्रह्माण्ड, सूरज, चाँद आदि को निरंतर गतिमान रखता है 

और सारे ग्रह उपग्रह सदा अपनी नियत कक्षाओं में ही चलते हैं

और हमने बना दिये धरती में पर्वत, ताकि झुक न[1] जाये उनके साथ और बना दिये उन (पर्वतों) में चौड़े रास्ते, ताकि लोग राह पायें। 
1. अर्थात यह वर्वत न होते तो धरती सदा हिलती रहती।
क़ुरआन 21:31

और हमने बना दिया आकाश को सुरक्षित छत, फिर भी वे उसके प्रतीकों (निशानियों) से मुँह फेरे हुए हैं।
क़ुरआन 21:32

वही है, जिसने उत्पत्ति की है रात्रि तथा दिवस की और सूर्य तथा चाँद की, प्रत्येक एक मण्डल में तैर रहे[1] हैं। 
1. क़ुर्आन अपनी शिक्षा में विश्व की व्यवस्था से एक के पूज्य होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है। यहाँ भी आयतः 30 से 33 तक एक अल्लाह के पूज्य होने का प्रमाण प्रस्तुत किया गया है।
क़ुरआन 21:33




तो वास्तव में सूरज के अस्त और उदय होने के विषय में जो प्रामाणिक हदीस है, उसमे विज्ञान विरुद्ध कोई बात नहीं, बल्कि आश्चर्यजनक रूप से जो कहा गया है वो विज्ञानसम्मत ही सिद्ध होता है ।।