अक्सर एक सवाल मे मुस्लिमों को उलझाया जाता है कि अल्लाह ने कुरआन में कुरान की हिफाजत की जिम्मेवारी ली है
वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी है और हम ही इसके रक्षक[1] हैं।
1. यह ऐतिहासिक सत्य है। इस विश्व के धर्म ग्रंथों में क़ुर्आन ही एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिस में उस के अवतरित होने के समय से अब तक एक अक्षर तो क्या एक मात्रा का भी परिवर्तन नहीं हुआ। और न हो सकता है। यह विशेषता इस विश्व के किसी भी धर्म ग्रंथ को प्राप्त नहीं है। तौरात हो अथवा इंजील या इस विश्व के अन्य धर्म शास्त्र हों, सब में इतने परिवर्तन किये गये हैं कि सत्य मूल धर्म की पहचान असंभव हो गय है। इसी प्रकार इस (क़ुर्आन) की व्याख्या जिसे ह़दीस कहा जाता है, वह भी सुरक्षित है। और उस का पालन किये बिना किसी का जीवन इस्लामी नहीं हो सकता। क्यों कि क़ुर्आन का आदेश है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हें जो दें उस को ले लो। और जिस से रोक दें उस से रुक जाओ। (देखियेः सूरह ह़श्र, आयतः 7) क़ुर्आन कहता है कि हे नबी! अल्लाह ने आप पर क़ुर्आन इस लिये उतारा है कि आप लोगों के लिये उस की व्याख्या कर दें। क़ुर्आन कहता है कि हे नबी! (सूरह नह़्ल, आयतः 44) जिस व्याख्या से नमाज़, व्रत आदि इस्लामी अनिवार्य कर्तव्यों की विधि का ज्ञान होता है। इसी लिये उस को सुरक्षित किया गाय है। और हम ह़दीस के एक-एक रावी के जन्म और मौत का समय और उस की पूरी दशा को जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि वह विश्वसनीय है या नहीं? इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि इस संसार में इस्लाम के सिवा कोई धर्म ऐसा नहीं है, जिस की मूल पुस्तकें तथा उस के नबी की सारी बातें सुरक्षित हों।
क़ुरआन 15:9
लेकिन हजरत आएशा एक हदीस मे बयान करती हैं कि जब नबी करीम स. का देहावसान हुआ तो हम सब उनके कफन-दफन की अफरा तफरी में थे. उस दौरान एक बकरी कुरआन की रजम और दुग्धजातता सम्बन्धी आयते, जो मेरे बिस्तर के नीचे रखी हुई थी, खा गयी".
यानी अल्लाह अपने वादे को पूरा करने मे विफल रहा. यही कारण है की कुरआन में छोटे- छोटे जुर्मो की सजा मौजूद है पर व्यभिचार की सजा पत्थर मार कर मृत्युदण्ड सिरे से मौजूद नहीं.
सबसे पहली बात तो
मैं बताता रहता हूँ, और फिर बता रहा हूँ कि कुरान की प्रमाणिकता को मुस्लिम लोग हदीसों के आधार पर सुनिश्चित नहीं करते बल्कि हदीस की प्रमाणिकता को कुरान के आधार पर सुनिश्चित करते हैं
और कुरान मे जब अल्लाह ने इसकी सुरक्षा का वादा कर लिया है तो इसके विपरीत जाने वाली ऐसी किसी हदीस की कोई प्रमाणिकता, कोई अर्थ नहीं रह जाता
इसी कारण इस हदीस को अनेक विद्वानों ने अप्रमाणिक करार दिया है, इसका एक प्रमुख कारण ये बताया गया है, कि क्योंकि ये हदीस केवल अम्मी आएशा रज़ि. से रिवायत की गई है अत: ये 'खबर ए वाहिद' यानि केवल एक व्यक्ति द्वारा कही गई बात है,
और सभी इस्लामी धार्मिक विद्वानों का मत है कि कुरान के विरुद्ध खबर ए वाहिद मान्य नहीं है ॥
पर यदि इस हदीस को हम सहीह ही मान लें , तो भी क्या ये सिद्ध होता है कि कुरान अधूरी है ??
हरगिज़ ऐसा कुछ सिद्ध नहीं होता ....
हमें पता है कि नबी ﷺ के जीवनकाल मे ही लोग कुरान का पाठ करने के उद्देश्य से नबी ﷺ पर अवतरित होने वाली कुरान की सभी आयतों का व्यक्तिगत रूप से संकलन करते थे
जो कि इसी प्रकार सम्भव था कि नबी ﷺ पर अवतरित होनेवाली हर आयत की अनेक प्रतिलिपियां बना ली जाएं
आपको ये भी पता होगा ऐतिहासिक तथ्य ये है कि उस समय के लोगों ने लगभग सात अलग अलग प्रकार की कुरान लिख ली थीं,
जो कि हज़रत उस्मान ग़नी रज़िअल्लाहु अन्हु के ख़िलाफ़त के दौर तक भी मौजूद थीं.
तो सहज प्रश्न उठता है कि यदि अम्मी आएशा रज़ि. के यहाँ रखी कुरान की दो आयतें बकरी खा गई, तो क्या यही बकरी कुरान की वो अनेक प्रतियां और सात प्रकार भी खा गई थी
जो अन्य सहाबा के घर मे थे
स्पष्ट है एक बकरी एक स्थान पर रखी हुई कुरान की ही दो आयतें खा जाती, तो उससे भी कुरान अधूरी नही हो सकती थी ,
क्योंकि उन आयतों की प्रतिलिपियां अन्य सहाबियों के पास तब भी सुरक्षित रखी हुई थीं
पवित्र कुरान की अंतिम आयत का अवतरण नबी ﷺ के देहावसान से तीन महीने पूर्व हुआ था वो आयत सूरह मायदा की थीं , यानि रजम और दुग्धजातता की आयतें इस से भी कुछ समय पूर्व अवतरित हुई थीं और उन आयतों की नकल बनाने के लिए सहाबा के पास पर्याप्त समय था यदि वो आयात कुरान मे शामिल की जाने वाली होती
ये भी तथ्य है कि नबी ﷺ के जीवनकाल से ही अनेक सहाबा ने नबी ﷺ की सहायता से सम्पूर्ण कुरान को कंठस्थ किया था , तो क्या ये हो सकता है कि वही बकरी सहाबा की स्मृति से भी कुरान पाक की वो दो आयतें खा गई थी ?
पर वास्तविकता ये है कि हदीस के अनेक वृतांत कभी कुरान का हिस्सा नहीं थे बल्कि उस समय के लोगों के लिए विधान थे क्योंकि उस समय के कानून को अल्लाह ने एक झटके से नहीं बल्कि धीरे धीरे बदला ताकि नए नए इस्लाम ला रहे लोग पूर्व की आदतों से धीरे धीरे करके छुटकारा पा लें
उदारणस्वरूप शराब या मुताह सम्बन्धी विधान.
शुरू मे मुताह यानी कॉन्ट्रेक्ट मैरिज की अनुमति नबी ﷺ ने मुस्लिमों को यदि दी थी तो वह ईश्वरीय अभिप्रेरण से ही दी थी क्योंकि उस समाज के लोगों की पक्की आदतों में था कि वे शराब के आदी थे और मुताः करते थे इन आदतों को एक झटके में छोड़ देना उन लोगों के लिए बहुत कठिन था
पर कुछ समय बाद जब लोग मानसिक तौर पर इस्लाम के नए नियमों को आत्मसात करने को तैयार हो चुके तो शराब और मुताह को इस्लाम मे नबी ﷺ ने ईश्वरीय अभिप्रेरण से प्रतिबंधित कर दिया
ये सभी बदलने वाले विधान हदीस मे तो बयान किए गए हैं क्योंकि हदीस एक ऐतिहासिक अभिलेख है, पर कुरान मे केवल अंतिम शब्द और सुदृढ़ आयतें ही अवतरित हुई हैं
ताकि आने वाली तमाम नस्लो के लिए कुरान एक सुस्पष्ट हिदायत हो, और कुरान पढने वालों को उसे पढ़कर कोई दिग्भ्रम न हो ॥
नबी ﷺ जानते थे कि रजम का विधान कुरान का अंग नहीं थे.
इसी कारण स्वयं नबी ﷺ ने रजम से सम्बन्धित आयतों को कुरान मे लिखने से रोका ऐसा कुछ एक हदीस से सिद्ध होता है कि सहाबा ने रजम सम्बन्धी विधानों (जो सम्भवत: इन्जील की आयतें थीं, व जिनके अनुपालन की नबी ﷺ ने उन समय के लोगों को शिक्षा दी थी) को कुरान मे लिखने की अनुमति चाही पर नबी ﷺ ने उन्हें इस बात की इजाज़त नहीं दी (मुस्तदरिक़ अल हाकिम मे हदीस नम्बर 8184 पर हजरत ज़ैद बिन साबित रज़ि. की रिवायत, हाकिम ने इसे सही प्रमाणित किया है)
स्पष्ट है कि नबी ﷺ ही जानते थे कि कौन सी बात कुरान का अंग है और कौन सी बात नहीं, सहाबा ए किराम इस विषय मे खुद नहीं जानते थे बल्कि वो केवल नबी ﷺ के बताए अनुसार कुरान को लिपिबद्ध करते थे
नबी ﷺ ने रजम सम्बन्धी विधान को कुरान मे लिखने से रोका इसका साफ अर्थ है कि रजम का विधान यानी व्यभिचारी को पत्थर मार मार कर मृत्युदण्ड देने का विधान हर समुदाय और हर परिस्थिति के लिए न होकर केवल उस समुदाय और उस जैसी परिस्थितियों के लिए था
जहाँ के लोग रक्तपात के आदी थे और बेहद सख्त दिल के थे जो किसी की साधारण ढंग से मृत्यु होते देखकर भी विचलित नहीं होते थे तो उनको भयाक्रान्त करने को उस समय रजम की सजा कायम रखी गई
क्योंकि इस्लाम मे हुदूद की सजाओं का एक मुख्य मकसद ये है कि उस सख्त सजा से समुदाय के व्यक्ति डर जाएं और पापकर्म से खुद को इस डर के कारण रोक लें
पर जो समुदाय ऐसे रक्तपात का आदी और सख्तदिल न हो उसमें वैवाहिक व्यभिचार, बलात्कार जैसे अपराध, जिन्हें इस्लामी विधि मे समाज मे अव्यवस्था पैदा करने वाले अपराध माना जाता है, ऐसे अपराधों के लिए किसी भी अन्य प्रकार से दण्ड दिया जा सकता है, जो कम वीभत्स लगे .
धरती मे अव्यवस्था पैदा करने वाले इन अपराधों की गम्भीरता के अनुसार मृत्युदण्ड आदि के विधान कुरान 5:33 मे स्पष्ट रूप से वर्णित हैं, जो दण्ड रजम या अन्य किसी विधि से दिया जा सकता है ॥
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से युध्द करते हों तथा धरती में उपद्रव करते फिर रहे हों, उनका दण्ड ये है कि उनकी हत्या की जाये तथा उन्हें फाँसी दी जाये अथवा उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं से काट दिये जायें अथवा उन्हें देश निकाला दे दिया जाये। ये उनके लिए संसार में अपमान है तथा परलोक में उनके लिए इससे बड़ा दण्ड है।
क़ुरआन 5:33
इसी तरह दुग्धजात सम्बन्ध का विषय है, जैसा कि आप जानते ही हैं कि प्राचीन अरब में एक प्रचलन था कि दूसरों के बच्चों को दूध पिलाने का काम कुछ स्त्रियां व्यावसायिक तौर पर करती थीं और एक ही स्त्री कई परिवारों के बच्चों को दूध पिलाती थी
इस्लाम के अनुसार एक ही स्त्री का दूध पीने वाले दो अलग परिवारों के लड़का लड़की का सम्बन्ध आपस में सगे भाई बहन के समान होता है और आपस में इन लड़का लड़की का विवाह वर्जित होता है
लोगों की आसानी के लिए इस विषय मे विधान धीरे धीरे बदले ऐसा अम्मी आएशा की सही मुसलिम मे वर्णित एक हदीस से ज्ञात होता है कि पहले 10 बार एक ही स्त्री का दूध पीने से अलग अलग परिवारों के लड़का और लड़की एक दूसरे के महरम हो जाते थे, फिर उस नियम को केवल पांच बार से बदल दिया गया
ये नियम धीरे धीरे इसलिए बदले गए, ताकि इस क़ानून के आने से पूर्व जो अभिभावक उन दो लड़के लड़की जिनका उनके युवा होने पर वो आपस में विवाह करवाना चाहते हों यदि वो कुछ बार उन दोनों बच्चों को एक ही स्त्री से दूध पिलवा रहे थे तो अब उनमें से एक अपने बच्चे की दाया को बदल दें, थोड़े समय बाद इस नियम को और सीमित किया गया.
फिर इसके बाद जब इस्लामी विधान के अनुसार लोगों ने अपने को ढाल लिया तब पांच बार का नियम भी केवल एक बार ही दूध पिला देने से बदल दिया गया, ये हमें मलिक मोवत्ता किताब 30, हदीस 4 और 6 से ज्ञात होता है. हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि. और अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ि० फरमाते हैं कि दुग्धजात सम्बन्ध केवल दो वर्ष से कम आयु के बालकों को और केवल एक ही बार दूध पिलाने से स्थापित हो जाता है "
स्पष्ट है कि यही अंतिम विधान है और इसी को कुरान मे सम्मिलित किया जाना था न कि 10 या 5 Suckling का विधान ।
दुग्धजात सम्बन्ध की सदैव रहने वाली ये शर्त कुरान (4:23) मे मौजूद है, कि एक मुस्लिम के लिए सभी दुग्धजात स्त्रियाँ और लड़कियां विवाह के लिए अवैध हैं !
तुमपर[1] ह़राम (अवैध) कर दी गयी हैं; तुम्हारी मातायें, तुम्हारी पुत्रियाँ, तुम्हारी बहनें, तुम्हारी फूफियाँ, तुम्हारी मोसियाँ और भतीजियाँ, भाँजियाँ, तुम्हारी वे मातायें जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो तथा दूध पीने से संबंधित बहनें, तुम्हारी पत्नियों की मातायें, तुम्हारी पत्नियों की पुत्रियाँ जिनका पालन पोषण तुम्हारी गोद में हुआ हो और उन पत्नियों से तुमने संभोग किया हो, यदि उनसे संभोग न किया हो, तो तुमपर कोई दोष नहीं, तुम्हारे सगे पुत्रों की पत्नियाँ और ये[2] कि तुम दो बहनों को एकत्र करो, परन्तु जो हो चुका। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
1. दादियाँ तथा नानियाँ भी इसी में आती हैं। इसी प्रकार पुत्रियों में अपनी संतान की नीचे तक की पुत्रियाँ, और बहनों में सगी हों या पिता अथवा माता से हों, फूफियों में पिता तथा दादा की बहनें, और मोसियों में माताओं और नानियों की बहनें, तथा भतीजी और भाँजी में उन की संतान भी आती हैं। ह़दीस में है कि दूध से वह सभी रिश्ते ह़राम हो जाते हैं, जो गोत्र से ह़राम होते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः5099, मुस्लिमः1444) पत्नी की पुत्री जो दूसरे पति से हो उसी समय ह़राम (वर्जित) होगी जब उस की माता से संभोग किया हो, केवल विवाह कर लेने से ह़राम नहीं होगी। जैसे दो बहनों को निकाह़ में एकत्र करना वर्जित है उसी प्रकार किसी स्त्री के साथ उस की फूफी अथवा मोसी को भी एकत्र करना ह़दीस से वर्जित है। (देखियेः सह़ीह़ बुखारीः5105, सह़ीह़ मुस्लिमः1408) 2. अर्थात जाहिलिय्यत के युग में।
क़ुरआन 4:23
इन सारे तथ्यों के सामने होने के बाद, ये जानने के बाद कि हर किस्म का विधान कुरान मे मौजूद है
क्या कोई ये कह सकता है कि कुरान अधूरी रह गई या सुरक्षित नही रही ?