सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ जहाँ कई अच्छी बातें हुई हैं वहीं इससे कुछ साइड इफेक्ट भी पैदा हुए हैं... ख़ासकर धर्म के मामले में अब ऐसे ऐसे सवाल लोगों के सामने खड़े किये जा रहे हैं जिनके अपने विश्वस्त धर्म गुरु से सही जवाब नहीं मिल पाने के कारण उन लोगों का विश्वास धर्म से ही डिगा जा रहा है .
कल फेसबुक की मित्रसूची में शामिल एक साहब ने बताया कि उन्होंने दो साल पहले इस्लाम का त्याग कर दिया है, पूछने पर इस्लाम पर अविश्वास की उन्होंने एक वजह ये बताई कि मुस्लिम शरीफ़ में एक हदीस है, कि उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा रज़ि० ने फ़रमाया कि पहले अवतरित नीयम के अनुसार 10 बार और बाद में बदले गए नीयम के अनुसार 5 बार एक ही स्त्री द्वारा दो अलग अलग परिवारों के बच्चों को दूध पिलाने से उन दोनो बच्चों में दुग्धजात सम्बन्ध स्थापित होने की आयतें क़ुरआन में अवतरित हुई थीं, और ये आयतें क़ुरआन में नबी ﷺ के देहावसान के समय तक भी पढ़ी जाती थी .
अब उन साहब का कहना है कि हदीस में क़ुरआन की जिन आयतों का ज़िक्र है ये आयतें उन साहब को कुरआन में ढूंढने पर नही मिलीं, अपने इलाके के किसी मुफ़्ती साहब से इस बारे में उन्होंने पूछा, तो मुफ़्ती साहब ने कोई उत्तर ही नहीं दिया इसलिये उनको क़ुरआन की प्रामाणिकता पर संदेह हो गया और उन्होंने इस्लाम त्याग दिया....!!!
मैं इस बात का विश्वास करके, कि ये भाई साहब सच बोल रहे हैं, उनकी आपत्ति का उत्तर दे आया हूँ.. और आग्रह करता हूँ कि और भी उनकी जो आपत्तियां हों, इस्लाम को छोड़ने की बजाय अगर वो इस बात पर ज़ोर दें कि उन्हें सही उत्तर किस तरह मिल सके, तो वो ज़्यादा सही नतीजे पर पहुँच सकेंगे
उत्तर : जिस हदीस पर आपत्ति जताई गई है, उस विषय में सबसे पहले ये बात समझ लीजिए कि कुरान की प्रमाणिकता को मुस्लिम विद्वान् हदीसों के आधार पर सुनिश्चित नहीं करते बल्कि हदीस की प्रमाणिकता को कुरान के आधार पर सुनिश्चित करते हैं.
और कुरान मे जब अल्लाह ने इसकी सुरक्षा का वादा कर लिया है (15:9), तो इसके विपरीत जाने वाली ऐसी किसी हदीस का कोई अर्थ नहीं रह जाता जिसकी बात क़ुरआन की बात के विपरीत जाती हुई दिखे.. ये एक साधारण नीयम है जिसके बाद व्यक्ति बिना किसी उलझन में पड़े सुकून से अपने धार्मिक कर्तव्यों को पूरा करता रहता है. आप ने जिस हदीस पर प्रश्न किया इसमें ये शब्द हैं कि "क़ुरआन में 5 बार दूध पिलाने से दुग्धजात सम्बन्ध स्थापित होने की आयत नाज़िल हुई थी".. अव्वल तो ये बात "खबर ए वाहिद" है यानि केवल एक व्यक्ति द्वारा कही गई बात है, और सभी इस्लामी धार्मिक विद्वानों का मत है कि कुरान के विरुद्ध खबर ए वाहिद मान्य नहीं है. फिर तथ्य ये भी है कि प्राचीन से प्राचीन ज्ञात क़ुरआन में ऐसी कोई आयत नही मिलती जैसी आयत का ज़िक्र उपरोक्त हदीस में है. इस तथ्य से इस शंका को बल मिलता है कि ये हदीस लिखे जाने के बहुत समय बाद इस हदीस के शब्दों में इस्लाम के शत्रुओं ने हेर फेर करके "कुरआन" में ये विधान अवतरित होने की बात दर्शा दी है. जबकि मूल हदीस में शब्द "क़ुरआन" का उल्लेख नही रहा होगा, और इस बात का उल्लेख रहा होगा कि नबी ﷺ के देहावसान के समय इस विषय में कौन सी आयत पढ़ी जाती थी.
इस्लाम के शत्रुओं द्वारा इस्लामी साहित्य से छेड़छाड़ के प्रयास एक ऐतिहासिक सच्चाई है, शत्रुओं द्वारा हदीसों के शब्दों में हेर फेर कर पाना इसलिये सम्भव था क्योंकि हदीसें आम जन की किताबें नही थीं बल्कि इन तक इस्लाम के बहुत छोटे से उलमा वर्ग की ही पहुँच थी, दूसरे हदीसों को कंठस्थ करके स्मृति में भी नही बिठाया जाता था इसलिये शत्रु किसी हदीस के कुछ शब्दों में हेर फेर करके अर्थ का अनर्थ कर सकते थे, जबकि इसके विपरीत क़ुरआन प्रत्येक मुस्लिम व्यक्ति के पास मौजूद रहने वाली और सदैव पढ़ी जाने वाली, असंख्य मुस्लिमों द्वारा कंठस्थ की जाने वाली किताब थी जिसमें चुपके से परिवर्तन कर देना असम्भव था, हालाँकि क़ुरआन में भी गलत बातें डालने "असफल" प्रयास कई बार किये गए, और हदीसों को बदलने के प्रयास भी कई बार पकड़े गए
इसी कारण हदीस अध्ययन के कई सिद्धांत विद्वानों ने तय किये हैं ताकि किसी विषय की हदीस की सही शिक्षा तब भी मालूम हो सके जबकि उस हदीस के शब्द अनियमित दीखते हों, या किसी हदीस के शब्द सुस्पष्ट न हों,
इन नियमों में सबसे परिचित नियम तो यही है कि हदीस को एक से दूसरे रावी तक पहुंचाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के सद्चरित्र और सच्चा व्यक्ति होने का विश्वास रहने पर ही हदीस को प्रमाणिक माना जाए, इसके विपरीत यदि हदीस पहुँचाने वाला कोई रावी ऐसा है जिसके चरित्र के बारे में अन्य स्रोतों से कुछ पता नहीं चलता तो ऐसी हदीस को सन्दिग्ध माना जाए
ऐसे कई कारण हो सकते हैं जिससे रावियों की चेन मज़बूत होने के बावजूद हदीस के शब्द जाने अनजाने मूल रूप से बदल कर अनियमित हो जाएं, इसलिये सबसे सुरक्षित नियम ये है कि क़ुरआन के विपरीत जाती प्रतीत होती हदीस पर क़ुरआन की बात को वरीयता दी जाए
इसके अतिरिक्त किसी भी विषय की एक हदीस की सही शिक्षा ज्ञात करने के लिए उस विषय की कई अलग अलग हदीसों का अध्ययन करना चाहिए और फिर इनकी बातों का एक दूसरी हदीस से मिलान किया जाए तब उस हदीस की सही सही शिक्षा का पता चलेगा, क्योंकि ऐसा कई बार होता है कि अनेक जगह हदीस में किसी वृत्तांत का संक्षेप में वर्णन होता है और पूरी बात की जानकारी के अभाव में उस अकेली हदीस को पढ़ने वाला व्यक्ति दिग्भ्रमित हो सकता है.
चलिये अब हदीस अध्ययन के उपरोक्त नियमों के अनुसार ही इस हदीस के बारे में जान लेते हैं कि वास्तव में यहाँ किस बात का ज़िक्र है,
देखिये जिन लोगों को इस्लामी साहित्य के गहरे अध्ययन का शौक होता है वो लोग थोड़ा ही इस्लामी इतिहास पढ़कर ये बात जान लेते हैं कि हदीसों के अनेक वृतांत ऐसे भी हैं जो कभी कुरान का हिस्सा नहीं थे बल्कि उस समय के लोगों के लिए विधान थे क्योंकि उस समय के कानून को अल्लाह ने एक झटके से नहीं बल्कि धीरे धीरे बदला ताकि नए नए इस्लाम ला रहे लोग पूर्व की आदतों से धीरे धीरे करके छुटकारा पा लें
उदारणस्वरूप शराब या मुताह सम्बन्धी विधान. ये सभी बदलने वाले विधान हदीस मे तो बयान किए गए हैं क्योंकि हदीस एक ऐतिहासिक अभिलेख है, पर कुरान मे केवल अंतिम शब्द और सुदृढ़ आयतें ही अवतरित हुई हैं. ताकि आने वाली तमाम नस्लो के लिए कुरान एक सुस्पष्ट हिदायत हो, और कुरान पढने वालों को उसे पढ़कर कोई दिग्भ्रम न हो ॥
इसी तरह दुग्धजात सम्बन्ध का विषय है, जैसा कि आप जानते ही हैं कि प्राचीन अरब में एक प्रचलन था कि दूसरों के बच्चों को दूध पिलाने का काम कुछ स्त्रियां व्यावसायिक तौर पर करती थीं और एक ही स्त्री कई परिवारों के बच्चों को दूध पिलाती थी. इस्लाम के अनुसार एक ही स्त्री का दूध पीने वाले दो अलग परिवारों के लड़का लड़की का सम्बन्ध आपस में सगे भाई बहन के समान होता है और आपस में इन लड़का लड़की का विवाह वर्जित होता है
लोगों की आसानी के लिए इस विषय मे विधान धीरे धीरे बदले ऐसा माँ आएशा रज़ि० की मुसलिम मे वर्णित इसी हदीस से ज्ञात होता है जिस पर आपने प्रश्न किया है. ये हदीस अतिक्रमण की बातों को छोड़कर वास्तव में केवल इतनी ख़बर देती है कि पहले 10 बार एक ही स्त्री का दूध पीने से अलग अलग परिवारों के लड़का और लड़की एक दूसरे के महरम हो जाते थे, फिर उस नियम को केवल पांच बार से बदल दिया गया. ये नियम धीरे धीरे इसलिए बदले गए, ताकि इस क़ानून के आने से पूर्व जो अभिभावक उन दो लड़के लड़की जिनका उनके युवा होने पर वो आपस में विवाह करवाना चाहते हों यदि वो कुछ बार उन दोनों बच्चों को एक ही स्त्री से दूध पिलवा रहे थे तो अब उनमें से एक अपने बच्चे की दाया को बदल दें . थोड़े समय बाद इस नियम को और सीमित किया गया.
फिर इसके बाद जब इस्लामी विधान के अनुसार लोगों ने अपने को ढाल लिया तब पांच बार का नियम भी केवल एक बार ही दूध पिला देने से बदल दिया गया, ये हमें मलिक मोवत्ता किताब 30, हदीस 4 और 6 से ज्ञात होता है. हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ि. और अब्दुल्लाह इब्न उमर रज़ि० फरमाते हैं कि दुग्धजात सम्बन्ध केवल दो वर्ष से कम आयु के बालकों को और केवल एक ही बार दूध पिलाने से स्थापित हो जाता है "
स्पष्ट है कि यही अंतिम विधान है और इसी को कुरान मे सम्मिलित किया जाना था न कि 10 या 5 बार दूध पिलाने का विधान ।
दुग्धजात सम्बन्ध की सदैव रहने वाली ये शर्त कुरान (4:23) मे मौजूद है, कि एक मुस्लिम के लिए सभी दुग्धजात स्त्रियाँ और लड़कियां विवाह के लिए अवैध हैं...!!!
By- Zia Imtiyaz