उम्मे शरीक रिवायत करती हैं कि नबी ﷺ ने उनसे सैलामैंडर को मार देने की बात कही, और आप ﷺ ने ये भी फ़रमाया कि इस जीव ने हज़रत इब्राहीम की आग को फूंका था.
Bukhari 3359
इस हदीस के शब्दों से अक्सर लोग ये गलत अर्थ लेते हैं कि सैलामैंडर ने हज़रत इब्राहीम की आग को भड़का कर गुनाह किया था, उस गुनाह की सज़ा के तौर पर इस जीव को मारना चाहिये
हालांकि हदीस में कहीं ऐसे शब्द नही हैं कि सैलामैंडर के गुनाह की सज़ा के तौर पर उसको मारो,
देखिए, बहुत सीधी सी बात है कि अल्लाह ने पाप और पुण्य कर सकने की क्षमता इस दुनिया में केवल इंसान को दी है ऐसा क़ुरआन में अहद ए अलस्त से सम्बंधित आयतों से साफ पता चलता है, कि पाप और पुण्य केवल और केवल इंसान कर सकता है, शेष जीव जगत ने इस परीक्षा को स्वीकारने से इनकार कर दिया था.
Qur'an 17.15
दूसरी बात, अगर एकबारगी मान लें कि किसी एक जीव में कभी अचानक से पापशक्ति पैदा हो गई थी और उसने चार हज़ार साल पहले कोई पाप किया, फिर वो जीव तो मर खप गया, उसके वंश में जो जीव पैदा हुए वो उसके पाप के भागी तो हो नही सकते क्योंकि क़ुरआन में स्पष्ट लिखा है कि कोई शय किसी का बोझ नही उठाएगी यानी किसी भी एक जीव को किसी दूसरे जीव के किये पाप का दोषी नही ठहराया जा सकता
तो फिर नबी ﷺ अपने से ढाई हजार साल पहले किसी जीव द्वारा किए पाप की सज़ा उसके वंशजों को देने की बात कैसे कह सकते हैं ?
स्पष्ट है कि उपरोक्त हदीस को अक्सर जिस रूप में ले लिया जाता है वो साफ़तौर पर क़ुरआन पाक के खिलाफ जाती हुई बात है, मतलब साफ है कि इस हदीस को सही रूप में समझा नही जा रहा,
उपरोक्त हदीस में दो अलग अलग बातें कही गई हैं, एक तो नबी ﷺ ने सैलामैंडर को मारने का हुक्म (सही शब्द का चुनाव किया जाए तो वो हुक्म की बजाय सलाह है) दिया है,
और दूसरी बात नबी ﷺ ने फ़रमाई है कि हज़रत इब्राहीम के लिये जो आग जलाई गई थी उसको सैलामैंडर ने फूंका था, यानी भड़काया था"
हदीस में बताई इन दोनों बातों में आपसी सम्बन्ध जोड़ने वाला शब्द नही है निश्चित ही एक आपसी सम्बन्ध है, जिसे लोगों के अज़्यूम करने पर छोड़ दिया गया है, पर इस हदीस पर लोग जो अज़्यूम करते हैं देखने में आ रहा है कि वो क़ुरआन के हिसाब से गलत साबित हो रहा है, क़ुरआन के कानून के खिलाफ साबित हो रहा है
तो फिर ज़ाहिर है इन दोनों बातों का कुछ और आपसी सम्बन्ध अज़्यूम करना होगा जो क़ुरआन के हिसाब से ठीक हो
आइये वास्तविक तथ्यों से सही बात को समझने का प्रयास करें और पहले सैलामैंडर के बारे में कुछ जान लें, सैलामैंडर की कुछ प्रजातियां सड़ी लकड़ियों में बैठती हैं, प्राचीनकाल में जब मनुष्य लकड़ियां इकट्ठी कर के जलाया करता था, तब उसमें से सैलामैंडर निकल कर भागते थे, जिसे देखकर ये मिथ भी बड़े पैमाने पर फैल गया था कि सैलामैंडर आग से जन्मने वाला जीव है,
बहरहाल जब ये जीव जलती आग से निकलकर भागता, तो अपनी पीठ पर राख व चिंगारीयां ले कर उन हिस्सों में भी आग फैला सकता था जहां आग न लगी हो, हज़रत इब्राहीम के लिये नमरूद ने जो बहुत सारी लकड़ियों को इकट्ठा कर के आग जलवाई थी हो सकता है कि उन लकड़ियों से भी सैलामैंडर निकल कर भागे हों, और उन्होंने आग का घेराव बढ़ा दिया हो, और उम्मे शरीक के घर में जब आप ﷺ ने जलावन की लकड़ियों में छिपे सैलामैंडर को देखा हो तो कहीं वो उनके घर में आग लगाने का कारण न बन जाये इसलिये आप ﷺ ने सुरक्षा की दृष्टि से उसे मारने के लिए कहा हो साथ ही ये बताया हो कि किस तरह सैलामैंडर ने हज़रत इब्राहीम के लिये लगाई गई आग को और विकराल बना दिया था, इसलिये आग के खतरे से बचने के लिए इसे मार डालो.
एक अन्य हदीस भी सुनी जाती है कि सैलामैंडर को एक वार में मार दो तो इतना सवाब और दो वार में मार पाओ तो उतना. उधर अन्य कई स्थापित हदीसों में ये शिक्षा नबी ﷺ ने दी है कि समस्त जीवजगत के साथ नेकी करने पर सवाब मिलता है और अकारण किसी जीव की हत्या करने पर पाप होता है,
एक हदीस का विशेषकर ज़िक्र करना चाहूंगा जिसमे बताया गया है कि एक महिला जिसने एक बिल्ली को भूखा प्यासा बंधक बनाकर मार डाला था, इस पाप के बदले अल्लाह ने उस स्त्री के लिए दोज़ख नियत कर दी थी
Muslim 2100
ऐसे में अकारण सैलामैंडर को मारने पर सवाब मिलने की बात तो पूरी तरह इस्लामी शिक्षा के खिलाफ हो जाएगी
केवल एक स्थिति में ही अपनी त्वचा पर भयंकर प्राणघातक विष रखने वाले और किसी स्थान पर आग भड़का सकने वाले जीव सैलामैंडर को मारने पर पुण्य मिलने की बात सही हो सकती है,
जब ये जीव अन्य लोगों की जान पर खतरा बन रहा हो और दूसरों की जान बचाने के उद्देश्य से कोई व्यक्ति इस जीव को मारे, तब उसके परोपकार की भावना के कारण उसे इस जीव को मारने पर भी पुण्य मिल सकता है
प्रतीत होता है कि ऐसे ही किसी समय नबी ﷺ ने किसी के पूछने पर बताया होगा कि दूसरों की प्राणरक्षा के लिये अगर इस जीव को मारा जाएगा तो पुण्य ही होगा, पाप नही.संयोग से ये बात सैलामैंडर को मारने के विषय में कही गई और पुण्य मिलने का कारण सैलामैंडर को समझ लिया गया, पर ऐसा था नही
उपरोक्त दोनों ही हदीस की बातें, स्पष्ट हैं कि केवल एक विशेष परिस्थिति के लिए कही गई थीं, ये कोई आवश्यक या बाध्यकारी धार्मिक दिशानिर्देश कतई नहीं थे क्योंकि बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत आयशा रज़ि० की रिवायत है कि मैंने कभी नबी ﷺ को सैलामैंडर को मारने का हुक्म देते हुए नही सुना,
Bukhari 1831
आपको ये मालूम ही होगा कि नबी ﷺ किसी भी तरह के धार्मिक ज्ञान की बात हज़रत आयशा रज़ि० को अवश्य बताते थे, पर ये बात नबी ﷺ ने हज़रत आयशा रज़ि० को नही बताई, यानी ये धार्मिक बातें नहीं थीं, न ही ये सब तक पहुंचाई जाने लायक महत्वपूर्ण बातें थीं, . परन्तु क्योंकि ये बातें नबी ﷺ ने कही थीं इसलिये लोगों ने इन्हें महत्वपूर्ण बात समझकर याद कर लिया था !