अम्मी आयशा रज़िअल्लाहु अन्हा के बारे में बुख़ारी शरीफ के हवाले से ये ख्याल किया जाता है कि वो अपने निकाह के वक़्त 6 साल और रुखसती के वक्त 9 साल की थीं
और इसी बात को लेकर कुछ गुमराह गैर मुस्लिम हमारी माँ आयशा रज़ि० और नबी ﷺ पर बेहद ही बहुदा इलज़ाम लगाते हैं.
बेशक़, नबी क़रीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उम्मुल मोमिनीन माँ आयशा सिद्दिक़ा रज़ि० की उम्र में फासला था, लेकिन माँ आयशा इतनी छोटी भी नहीं थीं जितना ख्याल किया जाता है
खुद बुख़ारी शरीफ की ही दो अलग विषयों की हदीसें इस बात के खिलाफ इशारा देती हैं कि अम्मा आयशा रज़ि० अपने निकाह के वक़्त 6 साल की थीं
उस ज़माने में अरब का रिवाज था कि कोई भी शख्स 15 साल की उम्र से पहले किसी जंग में शामिल नही हो सकता था, ये बात कई अहादीस से साबित है, खुद बुख़ारी शरीफ़ Hadith-2664 में इब्ने उमर रज़ि० से रिवायत है कि उहद की जंग के मौक़े पर उनकी उम्र 14 साल की होने की वजह से नबी ﷺ ने उन्हें जंग में शामिल होने से रोक दिया, और 15 साल की उम्र होने के बाद ही उन्हें खन्दक की जंग में शामिल होने की इजाज़त दी
और बुख़ारी शरीफ में दूसरी तरफ ये लिखा हुआ है कि अम्मी आयशा रज़ि० जंगे उहद में शामिल हुई थीं (Sahih Bukhari, Book -52 , Hadith
-131, और Book -58 , Hadith -156 ) (hadith-2880) . जंगे उहद 3 हिजरी में हुई थी यानी 2 हिजरी में अपनी रुखसती के वक़्त वो 14 साल की उम्र पार कर चुकी थीं, तभी तो 3 हिजरी में 15 साल की उम्र पार कर के जंग में शामिल हो सकीं.
सहीह बुख़ारी शरीफ में ही किताब 61 हदीस 515 में अम्मी आयशा रज़िअल्लाह तआला अन्हा फरमाती हैं कि वो सूरह क़मर के नुज़ूल के वक़्त खेलने वाली उम्र की लड़की थीं, रिवायत में लफ्ज़ जारियाः आया है, जारियाः उन लड़कियों को कहा जाता था जो किशोरावस्था शुरू होने के आस पास की उम्र में हों. आमतौर पर लड़कियों में किशोरावस्था 8-9 साल की उम्र में आती है.(Bukhari 4993)
ज्यादाते इस्लामी विद्वानों की राय है कि सूरह क़मर का नुज़ूल हिजरत से 8 साल पहले हुआ (The Bounteous Koran, M.M. Khatib, 1985) और हिजरत के दूसरे साल में अम्मी आयशा रज़ि० की रुखसती हज़रत मोहम्मद ﷺ के घर हुई,
यानि सूरह क़मर अम्मी आयशा रज़ि० की शादी से 10 साल पहले नाज़िल हुई थी, यानि अगर सूरह क़मर के नुज़ूल के वक़्त अम्मी आयशा रज़ि० 8 या 9 साल की थीं तो10 साल बाद अपनी शादी के वक़्त 18 या 19 साल की ठहरती हैं.
इसी तरह अल्लामा इब्न कसीर ने तफ़्सीर अल-बिदाया में लिखा है कि अस्मा बिन्त सिद्दीक़ रज़ि० की वफ़ात 73 हिजरी में हुई और तब उनकी उम्र 100 साल थी. अस्मा बिन्त सिद्दीक़ रज़ि० माँ आयशा सिद्दिक़ा रज़ि० की बड़ी बहन थीं और माँ आयशा से उम्र में 10 साल बड़ी थीं,
अब हिजरी सन की शुरुआत में अगर अस्मा बिन्त सिद्दीक़ रज़ि० की उम्र का हिसाब किया जाए तो (100-73=27) उनकी उम्र 27 साल निकलती है, और माँ आयशा रज़ि० की उम्र उनसे 10 साल कम यानि 17 साल होती है....
हज़रत आयशा रज़ि० की रुखसती नबी सल्ल० के घर 2 हिजरी में हुई , यानि माँ आयशा की उम्र (17+2=19) 19 साल होती है जब उनकी रुखसती हुई !!!
और ये भी साफ़ कर दिया जाय कि इस शादी का मकसद क्या था
गन्दी ज़हनियत के लोग इस शादी का मकसद सिर्फ फिज़िकल रिलेशन से जोड़ कर बदतमीज़ी करते हैं, लेकिन इस शादी का मकसद फिज़िकल रिलेशन से बहुत ज़्यादा अहम मकसदों को हासिल करना था, इस शादी का मकसद ये था कि औरतों के गुप्त विषयों में इस्लाम की क्या शिक्षाएं हैं, ये बात तमाम औरतों तक पंहुचाना अब क्योंकि शर्म वाली बातें औरतें सीधे तो नबी ﷺ से कह नही सकती थीं, इसलिये एक ऐसी मध्यस्थ औरत की ज़रूरत महसूस हुई जिसके और नबी ﷺ के बीच शर्म का पर्दा न हो, और जो बहुत ज़्यादा होशियार भी हो और बातों को बहुत अच्छे ढंग से खुद भी समझ लेती हो और उतने ही अच्छे ढंग से अपनी बात दूसरों को भी समझा सकती हो ताकि वो औरतों के सभी गुप्त विषयों की बातें बगैर शरमाये नबी ﷺ से पूछ सके और फिर खूब अच्छे ढंग से तमाम औरतों को समझा भी सके
हज़रत आयशा रज़ि० में होशियारी और बात को अच्छे ढंग से समझने और समझाने के ये सारे गुण थे, क्योंकि पति पत्नी के बीच में कोई पर्दा नही होता एक बीवी अपने शौहर से सारी गुप्त बातें कर सकती है, इसलिये माँ आयशा रज़ि० और नबी ﷺ अल्लाह की प्रेरणा से एक दूसरे से शादी करने के लिए तैयार हो गए.
इसके बाद माँ आयशा सिद्दिक़ा रज़िअल्लाहु अन्हा ने दीन की तब्लीग़ का काम बहुत ही खूबी के साथ और बड़ी ज़िम्मेदारी से निभाया, उम्मुल मोमिनीन हज़रत आयशा सिद्दिक़ा रज़ि० से मनसूब रिवायतों की तादाद इसीलिये अबु हुरैरह रज़ि० के के अलावा सबसे ज़्यादा हैं, जिन रिवायतों से इल्म लेकर आज तक मुसलमान मर्द औरत फायदा उठाते हैं !
_____________
लीजिए भाई एक वेबसाइट पर केवल इस बात से अन्दाजा लगा लिया गया कि अम्मी आएशा रज़ि• अपने विवाह के समय अबोध बच्ची थीं क्योंकि वो गुड़िया से खेला करती थी.
लेकिन गुड़िया से खेलना क्या वाकई अबोधता और इतनी कम उम्र होने का प्रतीक है ? मुझे तो नहीं लगता
असल मे ये सामाजिक परिवेश का फर्क है जो आज हम युवा लड़कियों द्वारा गुड़िया से खेलने की बात एक आश्चर्य के तौर पर लेते हैं, पर चालीस वर्ष का हो जाने पर भी क्रिकेट खेलने वाले पुरूषों को सामान्य तौर पर देखते है. बूढ़े हो चुके लोगों को भी मोबाइल पर वही गेम खेलते देखते हैं जो गेम हमारा सात साल का भाई भी चाव से खेलता है.
पर ये सब देखकर भी हम आश्चर्य नहीं करते . क्यों भाई ? खेल तो खेल है और खेलों का सम्बन्ध सामान्य तौर पर बच्चों से ही होता है
हमारे देश मे सावन के महीने मे प्रौढ़ महिलाएं भी मायके मे आकर झूला झूलती हैं. तो क्या आने वाले समय मे इनको भी 6 वर्ष की बालिका वधू मान लिया जाएगा ?
अस्ल मे हर दौर, हर समाज मे पुरुष और महिलाओं के पास समय काटने के अलग अलग साधन होते हैं, जो बदलते समय के साथ बदलते भी जाते हैं ।
एण्टी इस्लामिक साइट वाले ने तो एक सिरा पकड़ कर नबी ﷺ पर आपत्तिजनक आरोपों की झड़ी लगा दी पर जरा वो अपनी आंख चौड़ी कर के इन्टरनेट ही सर्च कर लेता तो उसे पता लगता कि गुड़िया का खेल बच्चों से ज्यादा वयस्क लोगों को प्रिय होते हैं
जैसे कि एक 43 वर्षों तक उत्तर पूर्वी पेरिस की अपनी दुकान में गुड़ियों की मरम्मत करने वाले हेनरी लॉने (Henri Launay) कहते हैं कि उन्होंने अपने कॅरियर के दौरान 30000 से अधिक गुड़ियों का सुधारा है। उनके ज्यादातर ग्राहक बच्चे नहीं बल्कि 50-60 साल के बुजुर्ग थे।
बहुत से मुसलमानों का भी यही ख्याल है कि हज़रत आएशा रज़ि० अपनी कमसिन उम्र के सबब ही गुड़ियों से खेला करती थीं .
.
बेशक़ हम अपने सामने सिर्फ़ 10-11 साल तक की बच्चियों को गुड़ियों से खेलते देखते हैं, जिस उम्र के बाद उनमें किशोरावस्था के लक्षण पैदा होने लगते हैं, उनकी दिलचस्पियाँ बदल जाती हैं, और गुड़ियों से खेलने का उनका शौक़ खत्म हो जाता है.
लेकिन ये सब देखने के बावजूद आपका ये अंदाज़ा लगा लेना दुरुस्त नही कि गुड़ियों से खेलने वाली लड़की अबोध उम्र की ही हो सकती है, उससे ज्यादा नही
सच्चाई ये है कि पुराने दौर में जवान लड़कियां और औरतें भी गुड़ियों से खेला करती थीं, और उनका गुड़िया से खेल अबोधता का प्रतीक नही बल्कि एक मनोरंजन था, घरदारी के जौहर दिखाने और वक्त गुजारी का साधन था.
आप इस मशहूर हदीस शरीफ़ पर गौर करें तो आपको मालूम चलेगा कि गुड़ियों से खेलने का मतलब अबोध, मासूम उम्र होना नही है .
हजरत आयशा सिद्दीका रज़ि. का बयान है के गजवा ए तबूक 9 हिजरी (या गजवा ए खैबर 7 हिजरी) से रसूले अकरम ﷺ वापस तशरीफ लाए तो उस वक्त मैं ने अपने ताकचा में पर्दा लटका रखा था, इसी दौरान एक जोरदार हवा चली जिसकी वजह से पर्दा हट गया और मेरी बनाई हुई गुड़ियां नजर आने लगी.
यह देख कर रसूले अकरम ﷺ ने दरयाफ्त फरमाया: आयशा ! यह सब क्या है ? हज़रत आयशा ने जवाब दिया: "मेरी गुड़िया है". रसूले अकरम ﷺ ने उन गुड़ियों के दरमियान एक घोड़े को देखकर जिसके ऊपर कपड़े के दो पर भी बने हुए थे, दरियाफ्त फरमाया : इन गुड़ियों के दरमियान में यह क्या देख रहा हूं? हज़रत आयशा ने जवाब दिया: घोड़ा है घोड़ा। रसूले अकरम ﷺ ने पूछा: उस घोड़े के ऊपर यह कौन सी चीज है? हज़रत आयशा ने जवाब दिया: इसके ऊपर दो पंख लगे हुए हैं। रसूले अकरम ﷺ ने ताज्जुब से फरमाया: कहीं घोड़े के भी पंख होते हैं ? अम्मां आयशा ने जवाब दिया: " क्या आपने सुना नहीं है कि हजरत सुलैमान अलैहिस सलाम के पास एक घोड़ा था जिसके पंख थे।" यह सुनकर हुजूर ﷺ इस कदर जोर से हंस पड़े जिससे आपकी दाढें नजर आने लगी। (अबु दावूद:4932)
अब आप हिसाब लगाएं, हज़रत आयशा रज़ि० की रुखसती नबी सल्ल० के घर में 2 हिजरी में हुई थी और जैसा कि आम ख्याल है, अगर उस वक्त उनकी उम्र 9 ही साल मानी जाए तो खैबर (सात हिजरी) के वक्त वो 14 साल की थीं, या तबूक के वक्त 16 साल की थीं, तो बताएं कि क्या आज की तारीख़ में 14 या 16 साल की लड़कियां गुड़ियों से खेलती हुई देखी हैं आपने ?
चौदह और सोलह साल की उम्र की लड़कियों में कोई अबोधता नही होती, उनके सारे शौक़ और सारी मसरूफियात जवान औरतों वाली होती हैं.
और माँ आएशा बता रही थीं कि वो चौदह या सोलह साल की उम्र में गुड़ियों से खेला करती थीं.
इस बात का साफ़ मतलब है कि उनका गुड़ियों से खेलना वक़्त गुज़ारने, व्यस्त रहने या मनोरंजन करने के लिए ही था, उनकी अबोध उम्र की वजह से नही था.
यह भी पढ़िए - MAA AISHA (RZ) KI MARRIAGE KE WAQT AGE KYA THI ?