क्या कुरान मे धरती को चपटा कहा गया है ?

इस आयत मे स्पष्ट तौर पर लिखा है कि अल्लाह रात को दिन पर और दिन को रात पर "लपेटता" है  रात और दिन का अर्थ आप जानते ही हैं कि ये धरती पर प्रकाश और अंधकार पड़ने का नाम है


उसने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को सत्य के आधार पर। वह लपेट देता है रात्रि को दिन पर तथा दिन को रात्रि पर तथा वशवर्ती किया सूर्य और चन्द्रमा को। प्रत्येक चल रहा है, अपनी निर्धारित अवधि के लिए। सावधान! वही अत्यंत प्रभावशाली, क्षमी है।
क़ुरान 39:5


1- क्या कुरान के अनुसार धरती अंतहीन , चपटी और अथाह है ?

लपेटने का अर्थ है किसी चीज को ऊपर नीचे हर ओर से गोलाई मे कवर करना, यानि कुरान के अनुसार अल्लाह दुनिया पर ऊपर नीचे, हर ओर से सूर्य का प्रकाश डालता है, इसका अर्थ है कि कुरान मे धरती को अंतहीन और अथाह गहराई वाला नहीं समझा गया है क्योंकि आयत मे धरती को ऐसा बताया गया है जिसपर कोई चीज "लपेटी" जा सकती है 

अगर धरती को अंतहीन और चपटा माना गया होता तो आयत मे लपेटने का शब्द न आता बल्कि धरती पर रात और दिन को "ओढ़ाने" या "बिछाने" का शब्द प्रयोग किया जाता ।
लेकिन लपेटने के शब्द से स्पष्ट होता है कि कुरान ने धरती को स्पष्ट रूप से चार आयामो वाला ग्रह माना है


2- धरती का आकार 

अब इस चार आयामी ग्रह का निश्चित रूप चट्टान की तरह ऊबड़ खाबड़, चौकोर, षट्कोण या कैसा है , ये भी देखिए 

क्योंकि दिन और रात के कोई ठोस स्वरूप तो होते नहीं हैं , बल्कि ये तो धरती पर प्रकाश और अंधेरा पड़ने का नाम हैं 

यानि रातऔर दिन मतलब प्रकाश और अंधेरा धरती पर पड़कर उसी आकार मे ढल जाएंगे जिस आकार की धरती होगी  इसका अर्थ ये हुआ कि दिन और रात धरती के आकार मे ढले होकर ही धरती पर "लपेटे" यानि गोलाकार मे कवर किए जाते हैं 

तो स्पष्ट है धरती का आकार भी गोल ही है .


3- धरती कुरान के अनुसार किसी सहारे पर टिकी हुई है या नहीं 

इस बात को समझने के लिए ये बात भी ध्यान मे रखिए कि कुरान पाक मे रात मे नजर आने वाले चन्द्रमा को आकाश मे स्थित बताया गया है

और बनाया है चन्द्रमा को उनमें प्रकाश और बनाया है सूर्य को प्रदीप
क़ुरान 71:16


फिर इस चन्द्रमा को अपने दायरे मे तैरता हुआ भी बताया गया है 

तथा वही है, जिसने उत्पत्ति की है रात्रि तथा दिवस की और सूर्य तथा चाँद की, प्रत्येक एक मण्डल में तैर रहे हैं।
क़ुरान 21:33

अब क्योंकि चन्द्रमा रात मे दिखता है, यानी ये धरती पर लपेटी जाती रात का पीछा करता है, अर्थात् धरती पर लपेटे जाने के क्रम मे चलता है, और आकाश मे रहते हुए धरती पर लपेटे जाने के क्रम मे, यानी धरती के ऊपर और नीचे ,हर ओर से धरती की परिक्रमा करते हुए चन्द्रमा तभी चल सकता है जब धरती भी आकाश मे बिना किसी सहारे वैसे ही स्थित हो जैसे चन्द्रमा, सूर्य ,तारे और अन्य ग्रह आकाश मे बिना किसी सहारे स्थित हैं ॥


4- धरती स्थिर है या चलायमान 

इस बात का पता भी धरती पर दिन और रात के लपेटे जाने की आयत से चल जाता है 

क्योंकि वैज्ञानिक तथ्य ये है कि अंधकार मूल, स्थायी और स्थिर रूप से पूरे ब्रह्माण्ड मे व्याप्त है , 

कुरान के मुताबिक भी, अल्लाह ने आकाश मे एक जलता हुआ दीप "सूर्य" स्थापित किया   


शूभ है वह, जिसने आकाश में राशि चक्र बनाये तथा उसमें सूर्य और प्रकाशित चाँद बनाया।
क़ुरान 25:61 


और दीपक की आवश्यकता तभी होती है जब पहले से मूल रूप से अंधेरा व्याप्त हो.

इसके अतिरिक्त ये भी तथ्य है कि प्रकाश तो स्थान परिवर्तन करता रहता है जबकि अंधेरा सदा अपनी जगह स्थिर रहता है, 

कुरान मे इस बात की भी पुष्टि की गई है.  कुरान मे अल्लाह फरमाता है कि " रात मनुष्यों के लिए एक निशानी है और जब अल्लाह उसपर से दिन को खींच लेता है तो लोग देखते हैं कि वो अंधेरे मे "रह" जाते हैं" 

तथा एक निशानी (चिन्ह) है उनके लिए रात्रि। खींच लेते हैं हम जिससे दिन को, तो सहसा वह अंधेरों में हो जाते हैं।
क़ुरान 36:37

स्पष्ट है कि कुरान के अनुसार दिन का प्रकाश हटा लिया जाता है, यानि दिन का स्थान परिवर्तन कर दिया जाता है, और दिन की अनुपस्थिति मे "अंधेरा रह जाता है", (न कि कहीं से अंधकार आ जाता है), और दिन के हटने पर अंधेरे का स्वत: रह जाना तभी सम्भव है जबकि अंधकार वातावरण मे स्थिर रूप से विद्यमान हो,

कुरान मे रात और दिन, यानी प्रकाश और अंधकार को धरती पर लपेटा जाता बताया गया है.. और किसी भी चीज को किसी चीज पर दो प्रकार से लपेटा जा सकता है , पहला प्रकार तो ये है कि जिस चीज पर कुछ लपेटा जाना है उस चीज को स्थिर रखते हुए लपेटी जाने वाली चीज को उसके चारों ओर घुमाया जाए,

इसके विपरीत किसी चीज पर कुछ लपेटने का दूसरा प्रकार ये है कि जो चीज किसी चीज पर लपेटी जानी है उस चीज को स्थिर रखते हुए, उस चीज को अपनी धुरी पर गोल गोल घुमाया जाए जिस पर कुछ लपेटा जाना है ....

जबकि अंधेरा स्थिर होता है , इसके बावजूद जब कुरान मे इसी अंधेरे को रात के रूप मे धरती पर लपेटे जाने की बात कही गई है, तो इसका साफ अर्थ है कि आयत मे धरती पर रात को लपेटने के लिए, लपेटने की प्रक्रिया के उपरोक्त दूसरे प्रकार का उल्लेख किया गया है, यानि अंधेरे को स्थिर ही रखते हुए धरती को धरती की अपनी धुरी पर गोल गोल घुमाया जाता है 

॥ यानी धरती स्थिर नहीं बल्कि चलायमान है कुरान के अनुसार ॥


कुरान के अनुसार धरती अण्डाकार है

कुछ लोग कहते हैं कि कुरान मे धरती को फैली हुई और चपटी बताया गया है, और सूरह नाज़ियत की आयत 30 मे लफ़्ज़ "दहाहा" का मतलब होता है फैलाना या विस्तार करना । बेशक "दहाहा" का अर्थ होता है किसी चीज को फैलाना और विस्तार देना, और सूरह नाज़ियत की 30 वीं आयत का अनुवाद भी अकसर यही किया गया है कि अल्लाह ने धरती को विस्तार दिया या फैलाया है. 

और इसके बाद धरती को फैलाया।
क़ुरान 79:30

जाहिर सी बात है हमारी धरती विस्तृत ही है  जो लोग फैलाने का अर्थ चपटा लगाते हैं, ये उनके अपने दिमाग का फितूर है, क्योंकि आयत मे किस दिशा मे धरती को फैलाया इस बात को तो कहा ही नही गया, 

अत: हम सामान्य नियम लगाकर इसे हर दिशा से फैलाना मानते है और यदि किसी भी वस्तु को हम हर ओर से अधिक से अधिक विस्तार देना चाहें तो वो वस्तु गोल ही बनकर आएगी .

और साथ ही साथ "दहाहा" का अर्थ ये भी है कि "किसी चीज का आकार अण्डे जैसा बनाना"

यानी अगर सूरह नाज़ियत 79:30 का तरजुमा ये किया जाए कि "अल्लाह ने धरती का आकार अण्डे जैसा बनाया" तो भी एकदम ठीक है ॥

क्या ये हैरत की बात नही है कि कुरान मे दुनिया के आकार का ज़िक्र करते वक्त एक ऐसा लफ़्ज़ दिया गया जिसका मतलब निकला है कि दुनिया का आकार गोल है, जैसा गोल आकार अण्डे का होता है ,और इस बात को विज्ञान ने साबित भी कर दिया है

बेशक ये कुरान का करिश्मा ही माना जाएगा, वरना लफ्ज़ दहाहा का कोई भी अलग मतलब निकल सकता था जो दुनिया की बनावट से बिल्कुल भी मेल न खाता

और लोगों का क्या है वो सिर्फ अपनी खीज निकालते हैं, क्योंकि दुनिया की बनावट के बारे मे ऐसा सटीक लफ्ज़ दुनिया की और किसी भी धार्मिक पुस्तक मे नही आया है

Bahut se log Qur'an ki baaz aayat pa ye ilzaam lagatey hai ki issey earth ke flat honey ka saboot milta hai aur apni baat ko aur saabit karney ke liye wo Allama Suyuti rh.a ki tafsir Jalalayn pesh kartey hai.



Pic me maine Imam Fakhr ud-Deen al Razi [ 1149-1209 C.E.] ki tafeer e kabeer (mafatih al ghayb) me surah baqarah aayah 22 ki tafseer ka ek hissa dia hai. Isse saabit hota hai ki Alhamdulillah Hamare puraane Ulama bhi Earth ka sphere hona maantey they, aur Jo hazraat issey flat honey ki daleel letey they unka radd bhi kiya karte they.
Imam Razi, Imam Suyuti ke zamaney se bahut pehle guzar chukey they.
(Kurrah = Sphere)

Jabki Imam ibn Hazm [ 994
-1064 C.E.] ne kab ka bata diya tha ki Zameen sphere hai. Surah Zumar kee paanchwi aayat mein likha hai YUKAWWIRU LAYLA ALA AN-NAHAAR WA YUKAWWIRUN NAHAARA ALAL LAYL.
Imam ne farmaaya ki kawwara lafz Kurrah (sphere) se nikla hai jiska matlab sphere hai.

Mushafiq Sultan bhai se kisi ne kaha ki Zakir Naik kehta hai ki Quran mein lika hai

Wal arda bada zaalika dahaha. (79/30) aur wo dahaha ko egg shaped tarjuma karta hai. lekin saari tarjuma karne waalon ne isko tarjuma kiya hai ki "thereafter he extended the earth". unhone dahaha ka tarjuma extended kiya hai jiska matlab ye hai ki earth flat hai.

Mushafiq Sultan bhai ne Jawab dia ki sab se zyaada extended to koi object kewal sphere shape me hee hota hai ki uska koi antim chor nahi.
baat us Sawal Poochhne wale ki samajh me aa gai aur wo Rafu chakkar ho gaya 

[ Ye Jankariyan abhi Mushafiq Sultan aur Hamza Aqib khan bhai se mili..]