देश के कुछ अलगाववादी संगठनों द्वारा इस्लाम के बारे मे ये प्रचारित किया जाता है कि मुस्लिमों ने विश्व को दो भागों मे बांटा है, एक भाग "दार उल इस्लाम" कहलाता है जहाँ इस्लाम फैल चुका है, और दूसरा भाग है "दार उल हरब" यानि वो शेष समस्त विश्व जहाँ इस्लाम नही फैला. और यहाँ इस्लाम फैलाने के लिए, इन देशों पर मुस्लिम सदा आक्रमण करने की टोह मे रहते हैं ।
इस प्रकार की भड़काऊ और तथ्यहीन शिक्षा सदा से देश के भोले भाले हिन्दुओं को दी जाती रही है, और मुस्लिमों का बेबुनियाद भय दिखा कर नफरत की खेती की जाती रही है .
जबकि सत्य ये है कि इस्लाम कभी भी मुसलमान को खुद कोई भी युद्ध शुरू करने की इजाजत नही देता. इस विषय मे मुस्लिम शरीफ की एक हदीस के शब्द बहुत प्रभावित करते हैं कि नबी ﷺ ने लोगों को हुक्म दिया " ऐ लोगों खुद कभी दुश्मन से लड़ाई भिड़ाई करने की चाहत न करो"
और साथ ही कुरान मे बड़ी स्पष्ट भाषा मे लिखा है कि धर्म कुबूल कराने के सम्बन्ध मे कोई जबरदस्ती नही की जानी चाहिए देखिए कुरआन,
''धर्म में बल प्रयोग नहीं। सुपथ, कुपथ से अलग हो चुका है। अतः, अब जो ताग़ूत (अर्थात अल्लाह के सिवा पूज्यों) को नकार दे तथा अल्लाह पर ईमान लाये, तो उसने दृढ़ कड़ा (सहारा) पकड़ लिया, जो कभी खण्डित नहीं हो सकता तथा अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है''
क़ुरआन 2:256
तो युद्ध कर के तलवार के जोर पे किसी को मुस्लिम बनाने की बात कोई मुस्लिम शासक सोच भी कैसे सकता था ?
ये भी स्पष्ट कर देना मै ठीक समझता हूँ कि दार उल हरब का अर्थ गैर इस्लामी विश्व नहीं होता बल्कि इसका मतलब है युद्ध का क्षेत्र .
दार उल हरब शब्द का जिक्र कुरान या किसी हदीस मे नही है किसी क्षेत्र को दार उल हरब का नाम देना एक फिक्ह है और फिक्ह केवल वही मान्य है जो कुरान और हदीस की शिक्षाओ के अन्तर्गत आए .शेष कोई भी बात मुस्लिम समाज के लिए कोई महत्व नही रखती
तो इस्लामी कानून के अनुसार कोई जगह युद्ध का क्षेत्र तभी बनती है जब उस जगह के लोग हमारी बस्तियों पर आक्रमण कर के हम को जान माल का नुकसान पहुंचाया करते हों .
इस कारण मुस्लिमों के नजरिये से दार उल हरब वो देश हैं, जो मुस्लिम देशों आक्रमण करते हों. ऐसे देश पर प्रत्युत्तर मे आक्रमण करने की हर समाज मे अनुमति है
देखिए इस विषय मे कुरान की शिक्षा
"जिन्होंने तुमसे युद्ध किया तुम्हें भी उनसे युद्ध करने की इजाजत है, किन्तु किसी पर अत्याचार न करना "
कुरआन 2:190
रहे वे गैर मुस्लिम देश जो कि शान्तिप्रिय हैं, उन देशों से मित्रवत व्यवहार करने की ही शिक्षा इस्लाम मुस्लिमों को देता है. इस विषय मे पवित्र कुरान मे स्पष्टत: लिखा है
" जिन लोगों ने तुमसे दीन (धर्म) के बारे में जंग नही की और न तुम को तुम्हारे घरो से निकाला, उनसे मित्रता करने और उनके साथ भलाई और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नही करता। खुदा तो इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता हैं "
कुरआन 60:8
अलगाववादियों द्वारा ये प्रचारित किया जाता है कि मुस्लिमों की नजर मे भारत दार उल हरब है. इसलिए भारत पर मुस्लिमों ने इतिहास मे भी अपना धर्म फैलाने के लिए अनेक आक्रमण किए, और आज भी भारत को मुस्लिमों से खतरा बना हुआ है, लेकिन जब हम इन आरोपों की पड़ताल करने के लिए इतिहास को खंगालते हैं तो ये संघी खुद के बुने जाल मे खुद ही फंसते नजर आते हैं
• ध्यान दीजिए कि यदि सभी गैर मुस्लिम देशों पर जबरन इस्लाम फैलाने के लिए आक्रमण करना मुस्लिम अपना कर्तव्य समझते थे तो उन्होने पैगंबर ﷺ के जीवनकाल मे ही भारत पर आक्रमण क्यों न किया ? जबकि अरब के लोग बहुत पहले से भारत आया जाया करते थे
• सन् 711 ईस्वी मे मुहम्मद बिन कासिम द्वारा सिंध पर चढ़ाई ( पैगंबर ﷺ के देहावसान के 80 वर्ष बाद ) को भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण बताया जाता है, सवाल ये उठता है कि यदि बिन कासिम भारत पर आक्रमण करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते थे तो भारत मे अपने देश के जहाज और उसमें सवार स्त्रियों, बच्चों और पुरुषों को बन्धक बना लिए जाने के बाद ही उन्होंने भारत पर आक्रमण क्यों किया ? उससे पहले क्यों नही ?
• इसके उपरांत 1001 ईस्वी मे महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया यहाँ भी यही सवाल उठता है कि यदि महमूद गजनवी भारत पर आक्रमण करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते थे तो गजनवी ने सन् 986-87 मे भारत के हिन्दू शाही वन्श के राजा जयपाल द्वारा गजनी पर आक्रमण किए जाने के बाद सन् 1001 मे भारत पर आक्रमण क्यों किया ? उससे पहले क्यों नही ?
• 1192 ईस्वी मे मोहम्मद गौरी द्वारा दिल्ली पर आक्रमण किया गया ये आक्रमण पृथ्वीराज चौहान द्वारा गौरी के साम्राज्य पर आक्रमण के प्रतिशोध स्वरूप गौरी ने किया. सवाल फिर वही. अगर भारत दार उल हरब था तो मोहम्मद गौरी ने खुद पर पहले आक्रमण करने का मौका ही कैसे दे दिया चौहान को ?
• मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने भी भारत पर कभी आक्रमण नही किया था बल्कि एक राजपूत राजा राणा सांगा ने बाबर को निमंत्रण भेज कर दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए भारत बुलाया था. और ये सब इतिहास मे दर्ज है
तो पता यही चलता है कि भारत पर आक्रमण स्वयं भारतीय नरेशो की गलतियों के कारण हुए, म्लेच्छ देशों पर आक्रमण करने और उन देशों के अनार्य, असुर, म्लेच्छ वासियों को दास बनाने की भावना खुद भारतीय नरेशो मे कूट कूट कर भरी हुई थी जिस कारण उन्होंने बार बार मुस्लिम देशों पर आक्रमण किए जिसके प्रतिशोध स्वरूप ही मुस्लिमों ने भारत पर आक्रमण किए. और अब भारतीय शासकों की गलतियों पर परदा डालने के लिए कुछ लोग मुस्लिमों के धर्म पर मिथ्यारोप लगा रहे हैं .