मुस्लिमों ने बनु मुस्तलिक़ पर आक्रमण क्यों किया था

उत्तर देने से पहले पाठको को पूरा प्रश्न सही से समझाने के लिए मैं ताबिश सिद्दीक़ी भाई की एक पुरानी पोस्ट का अंश डाल देता हूँ, फिर उत्तर देता हूँ

ताबिश भाई ने लिखा था "सहीह बुखारी:  हदीस नंबर 2541: इब्ने-औन बताते हैं कि “मैंने नफ़ी को एक ख़त लिखा और नफ़ी ने मेरे ख़त के जवाब में मुझे बताया कि “पैग़म्बर मुहम्मद ने बनू मुस्तलिक़ (एक कबीला) पर बिना किसी चेतावनी के उस समय अचानक से हमला किया था जब वो लोग एक जल स्रोत के पास थे और बेपरवाह हो कर अपने जानवरों को पानी पिला रहे थे. 

बनू मुस्तलिक़ की ओर से लड़ने वाले आदमियों को हमने मार डाला और उनकी औरतों और बच्चों को बंदी बना लिया नफ़ी ने आगे लिखा कि पैगम्बर को जुवैरियह (जो बाद में उनकी पत्नी बनी) इसी कबीले से मिली थी (बंदी के रूप में) नफ़ी ने लिखा कि इब्ने उमर ने बातें उन्हें बताई क्यूंकि इब्ने उमर ख़ुद पैगम्बर की तरफ़ से उनकी सेना में थे”

उपरोक्त बुख़ारी हदीस 2541  को मैं आगे एक्सप्लेन कर के आपको बताना चाहूँगा कि बनू मुस्तलिक़ क़बीले पर हमला, पैगम्बर मुहम्मद और उनकी सेना द्वारा सन 627 में किया गया था

यानि पैगम्बर के मक्का से मदीना जाने के पांच साल बाद पैगम्बर को ये ख़बर मिली थी कि ये लोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ गुट बना रहे हैं और उन्होंने अपनी सेना के साथ इन पर पहले ही हमला कर दिया 

पैगम्बर द्वारा दो सौ से अधिक परिवारों को इसमें बंदी बनाया गया था.. दो सौ ऊंट, पांच हज़ार भेड़, बकरियों और बहुत बड़ी तादात में सामान माल-ए-ग़नीमत (लूट का इनाम) के रूप में लिया गया था और फिर उन सामानों की बहुत ऊँचे दामों पर नीलामी की गयी थी"

चलिये जी अब उत्तर देते हैं

उत्तर-
बनु मुस्तलिक़ अरब में लाल सागर के समीप क़दीद के क्षेत्र में रहने वाला एक यहूदी कबीला था, ये मक्का के मूर्तिपूजकों के मित्र थे और मुस्लिमों के विरुद्ध युद्ध में बढ़चढ़कर मूर्तिपूजकों की सहायता किया करते थे
उहद के युद्ध में भी बनु मुस्तलिक़ ने मूर्तिपूजकों का साथ दिया जिस युद्ध में मुसलमानों को जानमाल की बहुत हानि हुई थी,


फिर 5 हिजरी में मुसलमानों को ये सूचना मिली कि बनु मुस्तलिक़ भारी मात्रा में एकत्र हो कर मुस्लिमों पर चढ़ाई करने आ रहे हैं, ये लड़ाकों, हथियारों और युद्ध में सहायक जानवरों की बड़ी भारी मात्रा लेकर आ रहे थे, स्पष्ट है हथियारों और लड़ाकों की इतनी बड़ी मात्रा के साथ जब मुसलमानों पर हमला किया जाता तो जानमाल का काफी नुकसान होता, इसलिए मुसलमानों के पास आत्मरक्षा में युद्ध करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था

उपरोक्त ताबिश भाई वाला वर्णन पढ़कर सहज ये भ्रम हो सकता है कि बनु मुस्तलिक़ के लोग अपने शहर, अपने घरों में बैठे थे जब मुस्लिमों ने उनपर अचानक हमला कर दिया, 

पर सच्चाई ये नही है, बनू मुस्तलिक़ अपने घरों में नही बैठे थे, बल्कि वो मुसलमानों पर हमला करने के लिए फौज और हथियार लेकर अपनी बस्ती क़दीद से बहुत दूर मदीना की ओर "अल मुरैसी" नामक एक जल स्रोत पर पहुँचकर पड़ाव डाल चुके थे जब मदीना से निकलकर मुसलमान इन तक पहुँचे अल तबरी, वॉल्यूम-8, पृष्ठ -51

बनु मुस्तलिक़ का चित्रण एक मज़लूम की तरह करने वालों को इस बात पर विचार करना चहिये कि जब वो फौज और हथियार लेकर पहले से मुसलमानों पर हमला करने के लिए निकल चुके और मार्ग में थे तो मुस्लिम क्या मदीना में ख़ामोश बैठकर खुद के मारे जाने की प्रतीक्षा करते, या अपनी जान बचाकर और कहीं भाग जाते जबकि जान बचाकर भागने पर यदि मुसलमानों की जान छोड़ दी जाती, तो मक्का से मुसलमान अपनी जान की सुरक्षा के लिए ही मदीना गए थे, लेकिन शत्रुओं ने मुस्लिमों के समूल नाश के प्रयास नही छोड़े

मुसलमानों द्वारा अचानक से बनु मुस्तलिक़ की फौज पर हमला भी भारी रक्तपात से बचने के उद्देश्य से मुसलमानों ने किया, अगर बनु मुस्तलिक़ के लोग सजग होते तो निश्चित ही दोनों ओर के सैंकड़ों लोग मारे जाते, पर मुस्लिमों ने बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेते हुए छापेमार ढंग से उन आक्रमणकारियों को जा दबोचा, यहूदियों ने सम्हलते हुए मुकाबले की कोशिश की इसमे जो झड़प हुई उसमें एक मुस्लिम और दस यहूदियों की जान गई, जो निश्चित ही यहूदियों द्वारा नियोजित भारी रक्तपात के मुकाबले कुछ नहीं था

मुसलमानों को मारने के उद्देश्य से जो शक्ति यहूदी युद्धक्षेत्र में लाये थे उन्हीं चीज़ों को माल ए गनीमत के रूप में मुसलमानों द्वारा बांट लेने की बात आपने ताबिश भाई के शब्दों में ऊपर पढ़ी,

ये वे सारे जानवर और हथियार व स्त्री पुरुष थे जो मुसलमानों को मारने के उद्देश्य से युद्ध के मैदान में लाये गए थे उन्हें मुस्लिमों ने बांट लिया और व्यक्तियों को बंदी बना लिया 

इसे लूट का माल नही कहा जाएगा क्योंकि यहूदी ये सब कुछ मुस्लिमों के लिए ही तो तैयार कर के लाये थे कि अगर मुसलमानों की हत्या करते समय में इनमें से बहुत से लोग मर भी जाएं तो चिंता नहीं

तो जब खुद वो ये फौज, हथियार और जानवर मुस्लिमों के लिये होम करने को तैयार थे, तो जब मुसलमानों ने उन इंसानों, जानवरों और हथियारों को नुकसान पहुचाएं बिना अपने पास रख लिया तो आपत्ति नहीं होनी चाहिए, ये उस समय का कानून था कि युद्ध जीतने लोग हारने वालों को गुलाम बना लेंगे और उनकी बस्तियां तबाह कर देंगे, और हथियार व अन्य उपयोगी सामान आपस में बांट लेंगे 

लेकिन नबी ﷺ ने बस्तियों को तबाह करने और युद्धक्षेत्र में न लाये लोगों को पूरी सुरक्षा देने का कानून बनाया युद्धक्षेत्र में लड़ने आये लोगों को मुस्लिमों ने युद्धबंदी बनाया, पर उनके साथ भी दुर्व्यवहार नही किया जिस प्रकार काफ़िर अपने युद्धबन्दियों को भयंकर शारीरिक प्रताड़नाएं दिया करते व स्त्रियों के बलात्कार किया करते थे.

यदि आप को कहीं कुछ पढ़कर ये सन्देह हो कि मुस्लिम लोग युद्ध में बन्दी बनाई गई स्त्रियों के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाते थे, तो मैं विश्वास दिलाता हूं ये झूट है, इस विषय में मैने एक लेख लिख रखा है उसका लिंक मैं आपको दे दूंगा.



पर युद्ध में बन्दी बनाई गई स्त्रियों से मुस्लिम कैसा व्यवहार करते थे इसका अनुमान इस युद्ध में बन्दी बनीं जुवैरिया बिन्त हारिस रज़ि० के वृत्तांत से भी आप लगा सकते हैं, इनके पति इसी युद्ध में मारे गए थे और ये विधवा हो गई थीं, इन्हें दासी के रूप में एक सहाबी हज़रत साबित बिन क़ैस रज़ि० को दिया गया था, पर हज़रत जुवैरिया रज़ि० ऐश्वर्य में पली बढ़ी थीं उन्हें घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने में असुविधा होने लगी और वे फ़रियाद लेकर नबी ﷺ के पास गईं नबी ﷺ ने उनकी विपदा सुनकर उनकी आज़ादी की क़ीमत चुका दी, फिर आप ﷺ ने हज़रत जुवैरिया रज़ि० को विवाह का प्रस्ताव दिया जिसे स्वीकार करके हज़रत जुवैरिया रज़ि० ने नबी ﷺ से विवाह कर लिया व मुसलमानों के मध्य सबसे ज्यादा सम्माननीय महिलाओं में से एक बन गई थीं इसके साथ ही उनके पिता और बनु मुस्तलिक़ के अन्य कई बंधकों को भी मुस्लिमों ने आज़ाद कर दिया, बाद में इन लोगों ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया अबू दाऊद, हदीस-3931

क्या इस उदाहरण को देखकर आप यह सोच भी सकते हैं कि मुसलमानों ने युद्धबन्दी पुरुषों के साथ किसी तरह का ज़ुल्म किया या युद्धबन्दी स्त्रियों या दासियों के साथ कोई अशोभनीय व्यवहार किया होगा ?