नबी ﷺ ने दवा के तौर पर ऊंट के पेशाब के सेवन की सलाह दी है

एक भाई बुख़ारी शरीफ़ की एक हदीस दिखा रहे हैं जिसमें कुछ रोगग्रस्त लोगों को नबी ﷺ ने दवा के तौर पर ऊंट के पेशाब के सेवन की सलाह दी है, ये हदीस दिखाकर भाई बता रहे हैं कि इस्लाम में भी तो ऊंट का पेशाब पीने की शिक्षा है फिर मुस्लिम गोमूत्र पीने को बुरा क्यों कहते हैं ?

सवाल करने वाले भाई से थोड़ा समझने में भूल हो रही है, हां वो ऊंट के पेशाब वाली हदीस सही है, पर वो सलाह न प्रत्येक व्यक्ति को दी गई है, न सामान्य परिस्थिति में वो सलाह दी गई है और न किसी तरह ऊंट के मूत्र को प्रसाद के तौर पर लेने की शिक्षा है, यानी सामान्य मुस्लिम आबादी कभी अपनी ज़िंदगी मे ऊंट के पेशाब को हाथ भी नही लगा सकती,

जबकि इसके उलट गोमूत्र को हमारे हिन्दू भाई रोज़ प्रसाद के तौर पर पीने की वकालत करते हैं, एक सामान्य आहार के तौर पर उसे लेते हैं, और प्रत्येक हिन्दू को उसे पीने पर ज़ोर देते हैं.  ये बहुत बड़ा अंतर है जिससे आप गोमूत्र का भोग लगाने और मौत के द्वार पर खड़े इंसान को अपनी जान बचाने के अंतिम विकल्प के तौर पर अपथ्य ऊंट का पेशाब लेने की मजबूरी को एक सा नही कह सकते.  आपदाकाल और सामान्यकाल एक जैसे नही होते.  आपदाकाल में इंसान अपनी जान बचाने के लिए वो सब कुछ कर सकता है जो सामान्य काल मे वो महापाप समझता था.

अब क्योंकि इंसान के लिये ऐसे समय अपनी जान बचाना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है इसलिये उसे जान बचाने के अंतिम मार्ग के रूप में इस्लाम ने भी छूट दी है कि सामान्य काल में तुम्हारे लिए जो चीज़ अपथ्य थी, अब मजबूरी के चलते अपनी जान की रक्षा के लिए तुम उसका सेवन कर लो तो माफ़ है, लेकिन उस अपथ्य का शौक़ करने वाले तुम न हो 
क़ुरआन, 2:173 और 16:115

जैसा कि आपने हदीस में देखा ही कि उन लोगों को कोई ऐसा रोग था जिससे उनका स्वास्थ्य अचानक बुरी तरह गिर गया था, और ऊंट का दूध और ऊँट का पेशाब दवा के तौर पर लेने से उनका स्वास्थ्य सुधर गया.  आज वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि ऊंट का पेशाब कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है, यहां "ज़हर को ज़हर काटता है" वाला नियम लगता है, निश्चित ही उन बीमार व्यक्तियों के शरीर में भी कैंसर या ऐसी ही कोई कोशिकाएं फैल रही थीं, जिनको बढ़ने से ऊंट के पेशाब ने रोक दिया.  अब क्योंकि कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, इसलिये इंसान ने अपनी जान बचाने के अंतिम विकल्प के तौर पर, कि इसके अलावा बचाव का कोई रास्ता नहीं,  अपथ्य चीज़ का सेवन कर लिया, पर सही होते ही उस अपवित्र चीज़ को छोड़ दिया, 

ये तो जगजाना तथ्य है कि दुनिया के लोग चाहे कितने पवित्र और शाकाहारी बनते हों, पर जब अपनी जान पर बनती है, तो अपने डाक्टर की हर सलाह मानकर गन्दी से गन्दी चीज और किसी भी जानवर का रक्त और मांस खा लेते हैं,  ये तो आप जानते ही होंगे कि एण्टी बायोटिक दवाएं जानवरों के रक्त और मांस से बनती हैं, जिन्हे बीमार पड़ने पर आप बिना पथ्य अपथ्य का विचार किए खा जाते हो.  लेकिन क्या ये दवाएं जो जानवरों के रक्त और मांस से बनी हैं आप स्वस्थ होने के बाद भी शुद्ध शाकाहारी होने के बावजूद खाते रहेंगे ? नही न.... आपका दिल ही नहीं मानेगा

फिर बगैर डॉक्टर की सलाह के, बिना किसी स्वास्थ्य समस्या एन्टी बायोटिक दवाएं खाने से आप किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं ये भी आप जानते हैं.  यही मामला गोमूत्र या किसी के भी पेशाब का है, मूत्र में शारीरिक अपशिष्ट और गन्दगियाँ शामिल होती हैं विशेषकर नाइट्रोजन और पोटैशियम.  ये अपशिष्ट अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति अपने शरीर में वापस डालता रहेगा तो उसके खून में संक्रमण, गुर्दों में ख़राबी और आंतों को नुकसान पहुँचेगा....!!!

तो पेशाब जैसी कोई चीज़ पवित्र प्रसाद मानकर रोज़ लेना खुद इंसान की जान के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन सकता है.   कैंसर की शुरुआत में भी बगैर किसी डॉक्टर की सलाह के खुद गाय या ऊंट का पेशाब पीना नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि किस अंग के कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के लिए पेशाब पीना फायदेमंद रहेगा, ये आप नही जानते बल्कि कैंसर विशेषज्ञ जानता है.  यूँ भी कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने और उन्हें सिकोड़कर खत्म कर डालने का साफ़ सुथरा और सफल इलाज कीमोथेरेपी साबित हो चुका है तो किसी जानवर के पेशाब को पीने की कोई ज़रूरत रह नही जाती.  ये बात मुस्लिम समुदाय समझता है, ज़रूरत है कि इस बात को हमारे बाक़ी भाई भी समझें......!!!!