पिछले कुछ दिनों मे कुछ जज़्बाती मुसलमानों के मुंह से ये बात मैने कई बार सुनी कि तौहीने रिसालत की सजा मौत है, नबी ए करीम ﷺ से अपने भाईयों की मोहब्बत की हम कद्र करते हैं लेकिन ये बात भी साफ कर देना चाहते हैं कि इस मामले मे मौत की सज़ा की बात सिर्फ जज़्बात मे बहकर हमारे भाई बोल रहे हैं, वरना हकीकत ये है कि शरीयत मे तौहीने रिसालत पर मौत की सज़ा का कोई प्रावधान नहीं है,
सबसे पुरानी इस्लामी विचारधारा के संस्थापक और भारतीय उपमहाद्वीप सहित विश्व के सर्वाधिक मुस्लिम जिनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं, उन इस्लामी विद्वान इमाम अबू हनीफा रह° ने तौहीने रिसालत पर मौत की सज़ा का विरोध किया है , हज़रत अबू हनीफा रह• ने फरमाया है कि किसी ज़िम्मी (इस्लामी हुकूमत मे महकूम गैर मुस्लिम) का कत्ल तौहीने रिसालत के जुर्म पर नहीं किया जा सकता क्योंकि वो ज़िम्मी पहले से ही उससे भी बड़े गुनाह (शिर्क) का मुजरिम है, (और जब शिर्क जैसे संगीन गुनाह के लिए उसे शरीयत ने मौत की सज़ा नहीं दी है तो तौहीने रिसालत, जो शिर्क से कम संगीन जुर्म है इस पर उसे मौत की सज़ा कैसे दी जा सकती है?)
इमाम खत्ताबी कृत मुअलिम अस-सुनन, शरह सुनन अबू दाऊद
बेशक हर समर्पित मुसलमान का विश्वास यही होना चाहिए कि नबी ﷺ की शान में गुस्ताखी बेशक गुनाहे कबीरा है, लेकिन ऐसे गुनाहगार को मौत की सजा अव्वल तो गैर इस्लामी कानून वाले मुल्क मे देने की अथॉरिटी किसी के पास हो नहीं सकती, दूसरे इस्लामी शरीयत जिस मुल्क मे लागू हो वहाँ भी गुस्ताखी ए रसूल पर मौत की सज़ा नही दी जा सकती, शरीयत के मुताबिक गुस्ताखी ए रसूल की सज़ा सिर्फ एक सूरत मे दी जा सकती है कि जब किसी मुल्क मे इस्लामी हुकूमत हो और हाकिम ने ज़िम्मियों और मुस्लिमों, सभी से ये अहद लिया हो कि वो किसी भी मज़हब का अपमान नहीं करेंगे और अगर करेंगे तो उस सजा को झेलने के लिए राज़ी होंगे जो मुआहिदे के वक्त तय की जाएगी, ये सज़ा भी मौत की न होकर कुछ मुद्दत की जेल, कुछ कोड़ों की मार या कुछ जुर्माने की हो सकती है ॥
इस कानून की वजह कुरान पाक की पवित्र आयतें और सही अहादीस हैं, कुरान पाक मे आया है -
“(ऐ नबी ﷺ) जो लोग तुम्हारी हँसी उड़ाते हैं, बेशक हम तुम्हारी तरफ से उनके लिए काफी हैं ”
Ref: Qur'an 15:95
यानि नबी ﷺ का मज़ाक उड़ाने की सजा किसी को देना पवित्र कुरान की शिक्षा के विरुद्ध है, अल्लाह कुरान पाक मे नबी ﷺ से फरमाता है कि नबी ﷺ का मजाक उड़ाने वालों को दण्ड देने का अधिकार अल्लाह ने अपने हाथ मे ले रखा है, न कि किसी देश के कानून को दिया है.
वहीं हदीसों मे ये दर्ज है कि प्यारे नबी ﷺ ने कभी अपना अपमान करने वाले व्यक्तियों के लिए मौत की सजा का हुक्म नहीं दिया था, बल्कि नबी ﷺ का अपमान करने वालों के कत्ल करने की जब नबी ﷺ के साथियों ने इजाज़त मांगी तो नबी ﷺ ने सहाबा को वो इजाज़त भी ना दी यहाँ पढ़िए 🔗गुस्ताख ए रसूल की सजा क्या है
लोग एक यहूदी शायर काब बिन अशरफ के कतल को गुस्ताखी रसूल की सज़ा बताते थे, स्टडी करने पर मालूम हुआ कि काब को मौत की सजा का हुक्म नबी ﷺ ने अपने अपमान की बजाय मुस्लिमों की जान माल की सुरक्षा के लिए दिया गया था (पढ़िए 🔗नबी ﷺ का अपमान करने वाले के लिए मौत की सजा है
हालांकि ये कोई तरीका नहीं कि कहीं से भी एक हदीस उठाकर बिना उसका पूरा पसमन्ज़र देखे उसपर अटकलें लगा ली जाएं मगर हमारे कुछ भाई तौहीने रिसालत के गुनाहगार को मौत की सज़ा होने की ऐसी ही अटकल, अबू दाऊद शरीफ की किताबे हुदूद की एक हदीस पर लगाते हैं कि एक नाबीना (नेत्रहीन) शख्स की खादिमा/उपपत्नी नबी ﷺ को अक्सर गालियां दिया करती थी और अपने स्वामी के रोकने से रूकती भी न थी, और एक दिन जब वो इसी तरह नबी ﷺ को गालियां दे रही थी तो गुस्से मे आकर उस नाबीना शख्स ने एक छुरी उठा कर उस औरत को मार दी, औरत पेट से थी, छुरी उसके पेट मे लगी जिससे वो औरत और उसके पेट के बच्चे दोनों की मौत हो गई, और जब इस कत्ल का मुकदमा नबी ﷺ ने कायम किया तो पूरा वाकया सुनने के बाद नबी ﷺ ने फरमाया कि इस कत्ल का कोई किसास नहीं है ॥
ReF: दाऊद हदीस नंबर 4341
ReF: दाऊद हदीस नंबर 4341
रावियों की चेन के आधार पर इस हदीस को सही प्रमाणित किया गया है, लेकिन इस हदीस के विषय मे और बहुत सी बातें जानना ज़रूरी हैं ॥
अव्वल तो बात इसकी कि इस हदीस मे एक बड़ा पेंच है, और वो ये है कि इस्लाम मे कानून है कि किसी बेगुनाह के नाहक कत्ल की सजा मौत है तो यहाँ पर गर्भ के कत्ल की सजा देना या किसास अदा करना ज़रूरी था, जिन बातों पर अमल नहीं किए जाने से साबित होता है कि ये हदीस इतनी संक्षिप्त बयान की हुई है कि उसके शब्द पर्याप्त रूप से अस्पष्ट हैं व इनसे ऐसी कोई शिक्षा नहीं ली जा सकती जो पवित्र कुरान या अन्य सही हदीसों की शिक्षा के विरुद्ध ठहरती हो ॥
फिर इस हदीस के सम्बन्ध मे ये बता दें, कि हदीस अध्ययन और उस अध्ययन के निष्कर्ष पर शरीयत के प्रतिपादन के सिद्धांतों के अनुसार इस हदीस की स्थिति क्या है, उपरोक्त हदीस मे बताया गया है कि उस स्त्री के कत्ल का मुकदमा नबी ﷺ ने अनेकों मुस्लिमों को एकत्र कर के पेश किया था, तब होना तो ये चाहिए था कि उपरोक्त घटनाक्रम को कई सहाबाओं ने रिवायत किया होता पर बहुत अजीब सी बात है कि ये हदीस हम तक केवल एक सहाबी के ज़रिए पहुंची है, अत: ये 'खबर ए वाहिद' यानि केवल एक व्यक्ति द्वारा कही गई बात है, और सभी इस्लामी धार्मिक विद्वानों का मत है कि कुरान एवं अन्य हदीसों के विरुद्ध जानेवाली खबर ए वाहिद मान्य नहीं है ॥
दूसरी बात किसी हदीस पर, विशेषकर संक्षेप मे बयान की गई हदीस पर कोई विश्वास बनाने से पहले उस विषय की कई हदीसों का अध्ययन किया जाना आवश्यक होता है, ताकि हदीस का विस्तार और उसकी सही शिक्षा पता चल सके, लेकिन यहाँ क्योंकि एक के अलावा दूसरे सहाबी ने इस हदीस को रिवायत ही नहीं किया इसलिए इस हदीस की सही शिक्षा पता चलना भी असम्भव है, और तीसरी बात, किसी के जीवन और मौत के अति गम्भीर विषय पर शिक्षा देनेवाली किसी एक संक्षिप्त हदीस के अध्ययन के आधार पर किसी को मौत की सजा देने की शिक्षा ग्रहण करने के पक्ष मे भी इस्लामी विद्वान कभी नही रहे हैं, तब तो और नहीं जब एक दूसरे का परस्पर समर्थन करने वाली अनेक अहादीस उस एक हदीस के विरोध मे मौजूद हों
यानि कुल मिलाकर ये हदीस शरीयत की दण्ड संहिता के निर्माण मे शामिल होने की शर्तों को ही पूरा नहीं करती
हां यदि इस हदीस से कोई ऐसी शिक्षा मिले जो नबी करीम ﷺ की अन्य अनेकों अहादीस की शिक्षा का समर्थन करती हो तो इस हदीस की वो शिक्षा इस कारण मान ली जाएगी क्योंकि अन्य कई हदीसों ने उस शिक्षा को समर्थन देकर मजबूत बना दिया है, तो इस हदीस से ये बात मालूम चलती है कि नबी ﷺ की हुकूमत के दौर मे ऐसा कोई भी कानून नहीं था जिसमें गुस्ताख ए रसूल को मुल्क का कानून हद्द या दूसरी भी किसी तरह की सज़ा देता, क्योंकि अगर उस दौर मे गुस्ताखी ए रसूल पर सज़ा का प्रावधान होता तो जब वो औरत बार बार नबी ﷺ की शान मे गुस्ताखी किया करती थी तो उसे सजा दिलाने के लिए वो शख्स वक्त के हाकिम नबी ﷺ से शिकायत करते बजाय खुद उस औरत पर वार करने के, लेकिन उस दौर मे गुस्ताखी ए रसूल पर सज़ा का कोई शरई हुक्म न होने की वजह से बहुत मुद्दत तक उन नाबीना शख्स ने नबी ﷺ की शान मे गुस्ताखियां बर्दाश्त कीं जिससे ये ही बात साबित होती है कि नबी ﷺ की तौहीन के गुनाह की नबी ﷺ ने भी अपनी हुकूमत मे कोई सजा न रखी थी और इस गुनाह की सजा का फैसला अल्लाह पर ही छोड़ रखा था ॥
By- Zia imtiyaz