मेराज का सफर

क्या गधे उड़ सकते हैं ?  अस्ल मे इशारा मेराज के वाकये मे नबी ﷺ के पास भेजे गए शुभ्र श्वेत और बहुत तीव्रगामी जानवर बुर्राक़ की ओर था,  विश्वास नही आ रहा था कि गधे या घोड़े जैसा जानवर आकाश मे उड़ कर नबी ﷺ को सातवें आसमान पर कैसे ले जा सकता है ?

हालांकि अल्लाह के हुक्म से कुछ भी आम आदत से अलग और चमत्कारी बात हो जाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है और इस चमत्कार मे हर वो व्यक्ति विश्वास करता है जो नास्तिक नही है ,क्योंकि किसी भी धर्म मे विश्वास करने वाला व्यक्ति ईश्वर के अस्तित्व मे विश्वास करता है ,  और ईश्वर स्वयं एक चमत्कार है, क्योंकि विश्वास ये है कि ईश्वर ने विज्ञान का निर्माण किया है, और वो ही विज्ञान के नियमों का संचालन करता है, 

अत: विज्ञान के नियम ईश्वर के अधीन हैं, न कि ईश्वर विज्ञान के अधीन है, 

तो ईश्वर को मानने का अर्थ है विज्ञान की ईश्वर के सम्मुख हार, और ईश्वर द्वारा कोई भी चमत्कार कर सकने को स्वीकारना.
बहरहाल प्रश्न पर आते हैं, और पता करते हैं कि -  क्या वाकई मेराज की घटना मे नबी ﷺ किसी जानवर पर बैठकर आसमान पर गए थे ?

मेराज की घटना के बारे मे सबसे महत्वपूर्ण बात ये जान लेनी चाहिए कि इस मेराज के वाकये के वास्तव मे दो भाग हैं, 

जिन्हें (1) इसरा, और (2) मेराज, الإسراء والمعراج  कहा जाता है जिसमें इसरा का मतलब है रातों रात सफर करना यानि इसरा का अर्थ जमीनी यात्रा है और मेराज का मतलब है ऊंचाई पर उठना

सवाल करने वालो के लिए ये भी जानना ज़रूरी है कि इसरा वल मेराज के सफर के बारे मे मुसलमानों मे दो किस्म के खयाल हैं, बड़ा तबका ये मानता है कि नबी ﷺ मेराज पर जिस्म के साथ गए थे जैसा कि अल्लाह के हुक्म से होना बिल्कुल मुश्किल नहीं है , वहीं कुछ मुस्लिमों का ये ख्याल भी है कि इस सफर पर नबी ﷺ का जिस्म नही केवल आप ﷺ की रूह गई थी 

इनके इस ख्याल का आधार उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीका रज़ि. का ये कौल है कि " मेराज का वाकया हुज़ूर ﷺ की रूह के साथ ही पेश आया था और आप ﷺ के जिस्म ने अपनी जगह नहीं छोड़ी थी " अम्मा आइशा रज़ि. के इस क़ौल को अल-ताबरी और इब्न कसीर जैसे विद्वानों ने अपनी तफ्सीरात मे नक्ल किया है  

जो लोग इसरा वल मेराज को रूहानी सफर मानते हैं उनका अकीदा है कि कुरान की भाषा अलन्कारिक है इसलिए मेराज के विषय मे कुरान की आयतों का शाब्दिक अर्थ ले लेने से घटना को सही प्रकार समझा नहीं जा सकता

बहरहाल क्योंकि अधिकतर मुस्लिम जनसमुदाय और मुसलमान विद्वान कुरान मे जो कुछ जैसा जैसा लिखा है, उस बात को उस आयत के शाब्दिक अर्थ लेकर वैसे का वैसा मानते हैं और उसके लिए अक्सर सही इस्नाद वाली अहादीस की मदद लेते हैं, तो एक आम मुसलमान होने के नाते कुरान पाक की आयतों पर वैसे का वैसा यकीन करते हुए मै भी इस घटना के पहले भाग इसरा को आप ﷺ का जिस्मानी तौर पर किया हुआ सफर मानता हूँ , उस हिसाब से घटना को देखिए .


बुर्राक़ को गधा कहा, निश्चित ही हमें चिढ़ाने के लिए, 

वैसे बुर्राक़ का वर्णन एक अलग ही अनोखे जीव के रूप मे हुआ है, बुर्राक़ के बारे मे पवित्र कुरान मे नहीं लिखा है ! और बुखारी शरीफ से अधिक विस्तार से बुर्राक़ के बारे मे मुस्लिम शरीफ मे लिखा है

और सही मुस्लिम किताब-1, हदीस-309 मे लिखा है कि एक रात जिब्रील अ.स. मक्का मे नबी ﷺ के पास बुर्राक़ नामी एक चमकदार सफेद रंग का खूबसूरत जानवर लाए ये जानवर कद मे गधे से कुछ ऊंचा और खच्चर से कुछ छोटा था, ( ये चाल मे इतना तेज़ था कि) इसका खुर इतनी दूर जाके पड़ता था जहाँ तक नजर जाती थी
इस बुर्राक़ पर बैठकर ज़रा सी ही देर मे आप ﷺ मक्का से 767 मील (1234 किमी.) दूर येरूशलम के बैतुल मुकद्दस पहुंच गए , जहाँ नबी ﷺ ने बुर्राक़ को बाहर बान्ध दिया और खुद बैतुल मुकद्दस मे जाकर आप ﷺ ने दो रकअत नमाज़ पढ़ी
इसके बाद इसके बाद जिब्रील अ.स. नबी ﷺ को मेराज पर ले गए.

यहाँ ये नहीं लिखा कि नबी ﷺ दोबारा बुर्राक़ पर बैठे फिर मेराज पर गए और बुर्राक़ की चाल की तेजी का जिक्र करते हुए भी यही लिखा है कि बुर्राक़ के पैर कितनी कितनी दूर पड़ते थे, वहीं बुखारी शरीफ, किताब-8, हदीस 345 मे लिखा है कि जिब्रील अ.स. नबी करीम ﷺ का हाथ पकड़कर मेराज पर ले गए थे, यानि कहीं भी स्पष्ट रूप से ये नही लिखा कि बुर्राक़ आकाश मे उड़ सकता था या बुर्राक़ पर बैठकर सीधे आसमान पर गए थे .

इन सब तथ्यों से यही सिद्ध होता है कि बुर्राक इस यात्रा के केवल जमीनी भाग यानि इसरा से सम्बन्धित है, इसरा की विश्वसनीयता का सबसे बड़ा प्रमाण है इसके बारे मे सबसे विश्वसनीय किताब पवित्र कुरान की ये आयत कि " महिमावान है वो रब्ब जो अपने बंदे को रातों रात मस्जिद ए हराम से मस्जिद ए अक्सा तक ले गया .."
[अल-इसरा, आयत-1]

इसरा और मेराज की घटना मे लोगों को मेराज की अपेक्षा इसरा की बात ही अधिक अविश्वसनीय लगी (क्योंकि सिदरतुल मुन्तहा आदि कहाँ है ये अल्लाह और उसके रसूल के अतिरिक्त किसी को मालूम नही है )  अत: लोगों ने ये ही शंका जताई कि कोई भी व्यक्ति एक ही रात मे 1200 किमी. की दूरी तक जाकर और फिर वहाँ से लौट कर कैसे आ सकता है ?

तो जैसा कि सही बुखारी , वॉल्यूम 5, किताब 58, हदीस 226 मे लिखा है, आप ﷺ ने लोगों को बैतुल मुकद्दस का नक्शा बताना शुरू कर दिया जैसा कि उन्होंने रात मे बैतुल मुकद्दस को देखा था ,इसके अतिरिक्त आप ﷺ ने कीकर के उस अभिशप्त पेड़ के बारे मे भी बताया जिसका कुरान मे जिक्र है और जिसे आप ﷺ ने बैतुल मुकद्दस के रास्ते मे देखा था .

अत: वे लोग जो पहले कभी बैतुल मुकद्दस देख आए थे , नबी ﷺ के बताए बैतुल मुकद्दस के वर्णन को एकदम सटीक पाकर उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि नबी ﷺ रात ही रात मे येरूशलम जा आए हैं, क्योंकि इस से पहले नबी करीम ﷺ कभी येरूशलम नही गए थे , और मस्जिद को बगैर देखे उस की यथास्थिति को इतनी सटीक तौर पर जानना किसी के लिए भी असम्भव ही था !

हां अंत मे ये कहना चाहता हूँ, कि इसरा अथवा मेराज की घटना को चमत्कार से ज्यादा आप ﷺ का सम्मान के रूप मे देखा जाना चाहिए, इसरा वल मेराज पर विश्वास करना मुस्लिम आस्था का महत्वपूर्ण भाग है, पर इसको यदि कोई गैर मुस्लिम चमत्कार न मानना चाहे, तो उसके आगे इसे हमें सिद्ध करने की आवश्यकता भी नहीं है .

क्योंकि मेराज की घटना 1400 साल पहले घटित हुई थी और हमेशा के लिए उस घटना की कुरानी आयत के अतिरिक्त कोई और निशानी नहीं बनाई गई है .

अत: कोई न मानना चाहे , न माने 

वे इस्लाम के उच्च नैतिक नियमों को ही माना लें, तो इतना काफी है