एक सवाल आया है. कि जबकि इस्लाम के हिसाब से जन्नत या दोज़ख इन्सान को कयामत के बाद मिलेगी तो फिर मेराज की रात मे आप ﷺ की तमाम नबियों से मुलाकात कैसे हुई, और इस रात मे नबी ﷺ ने दोज़ख मे औरतों को कैसे देख लिया ?
दोस्तों, जैसा कि मैं पहले बता चुका हूँ, कि मेराज के वाकये के दो भाग हैं, 1. इसरा, यानि जमीनी सफर, और 2. मेराज यानि आसमानी सफर
मैं आपको ये भी बता चुका हूँ कि इसरा वल मेराज के सफर के बारे मे मुसलमानों मे दो किस्म के खयाल हैं, बड़ा तबका ये मानता है कि नबी ﷺ मेराज पर जिस्म के साथ गए थे , जैसा कि अल्लाह के हुक्म से होना बिल्कुल मुश्किल नहीं है , वहीं कुछ मुस्लिमों का ये ख्याल भी है कि इस सफर पर नबी ﷺ का जिस्म नही केवल आप ﷺ की रूह गई थी, इनके इस ख्याल का आधार उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीका रज़ि. का ये कौल है कि " मेराज का वाकया हुज़ूर ﷺ की रूह के साथ ही पेश आया था और आप ﷺ के जिस्म ने अपनी जगह नहीं छोड़ी थी " अम्मा आइशा रज़ि. के इस क़ौल को अल-ताबरी और इब्न कसीर जैसे विद्वानों ने अपनी तफ्सीरात मे नक्ल किया है .
साथ ही मै ये भी कह चुका हूँ कि मेरा अकीदा ये है कि इस सफर का जमीनी हिस्से वाला वाकया आप ﷺ के जिस्म के साथ पेश आया था.
यहीं मैं कहना चाहता हूँ दो हिस्सों मे हुआ ये सफर जिस्मानी और रूहानी दोनों ही तौर पर हुआ, यानि "इसरा" तो आप ﷺ के जिस्म के साथ हुआ पर "मेराज" आप ﷺ की रूह के साथ हुआ था . क्योंकि कुरान शरीफ मे इसरा का जिक्र करते हुए अल्लाह साफतौर पर फरमाता है कि वो एक ही रात मे अपने बन्दे को खान-ए-काबा से मस्जिद ए अक्सा तक ले गया , यानि कुरान मे अल्लाह ने इसरा का ज़िक्र एक अस्ल जिस्मानी सफर के तौर पर किया . फिर इसरा को ही अल्लाह ने कुरान और हदीस मे लोगों के सामने साबित भी किया है . और हमारा अकीदा है कि कुरान मे कोई बात, इस तरह से नही लिखी गई है जैसी हकीकत मे हुई ही न हो, इसलिये हमे पूरा विश्वास है कि इसरा के सफर पर आप ﷺ जिस्मानी तौर पर गए थे .
जहाँ तक इस सफर के दूसरे भाग यानि मेराज (ऊंचाई पर जाने) का ताल्लुक है, तो उसके बारे मे अल्लाह पाक ने कुरआन पाक सूरह बनी इसराईल की 60 वीं आयत मे खुद इसे एक "रुया" यानि एक अलौकिक दृश्य फरमाया है, और इस रात के सिलसिले मे कुरान पाक मे कहीं ये नही लिखा कि अल्लाह ने नबी ﷺ को आसमानो की सैर कराई, न ही ये लिखा है कि अल्लाह.ने नबी ﷺ को सातवें आसमान पर बुलाया, बल्कि पवित्र कुरान मे केवल इतना लिखा है कि "नबी ﷺ ने सिदरतुल मुन्तहा (जन्नत के द्वार के निकट स्थित बेर का पेड़ ) के पास जिब्रील अ.स को देखा "
अब क्योंकि अल्लाह अपने बन्दे को कहीं से भी कहीं का मन्ज़र रूहानी तौर पर दिखा सकता है, फिर अगर आप ﷺ जिस्म के साथ आसमान पर गए होते, तो मक्का वालों के आगे सिर्फ येरोशलम तक के सफर को नही बल्कि आसमान के सफर को भी साबित करते ..
अब सवाल ये है कि कयामत से पहले कोई जन्नत मे नहीं जा सकता तो फिर आसमान पर तमाम नबियों से आप ﷺ की मुलाकात कैसे हुई थी .
पहली बात तो ये समझिए कि आप ﷺ से नबियों की मुलाकात जन्नत मे नहीं बल्कि आसमान पर हुई बताई गई है, और क्योंकि तब तमाम नबी बरज़ख के आलम मे थे सो यही ज़ाहिर होता है कि आप ﷺ से तमाम नबियों की रूहों की मुलाकात हुई थी, इसलिए हज़रत आइशा रज़ि. के इसी कौल के हकीकत होने की पूरी गुन्जाइश है कि आप ﷺ की भी सिर्फ रूह आसमान पर गई थी, जिस्म नही .
इसी तरह इस रात मे दोज़ख मे औरतों को बहुतायत से आप ﷺ को दिखाया जाना भी एक अलौकिक दृश्य था, और औरतों के बड़ी संख्या मे दोज़ख मे होने वाली हदीस मे आगे ये लिखा है कि क्योंकि औरतें अपने पति के साथ अकारण ही नाशुक्रगुज़ारी करती हैं, इस कारण वो दोज़ख मे थीं . इस हदीस मे ये बात केवल ये शिक्षा देने के लिए की गई है कि मरने से पहले ही स्त्रियाँ अपने दोज़ख मे जाने के एक सम्भावित कारण को जान लें और इस कारण , यानि नाशुक्री की आदत को त्यागकर अपना जन्नत मे जाना सुनिश्चित कर लें . इस हदीस मे केवल इतना सिखाया गया है, और वास्तव मे उस समय तक कोई भी प्राणी जन्नत या दोज़ख मे नही गया था .
वल्लाहु आलम !
• Meraj Ka Safar - Al-buraq
• मेराज का सफर